नईदिल्ली। समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव को उनके ही पुत्र और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने राजनीति की बिसात पर शह दे दी है। जनेश्चर मिश्र पार्क में सपा के विशेष अधिवेशन में अखिलेश यादव को राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित कर दिया गया है। मुलायम सिंह इसके खिलाफ चुनाव आयोग चले गए हैं। राजनीतिक जानकार इस कदम को समाजवादी पार्टी के लिए नुकसानदेह मानकर चल रहे हैं। उनका कहना है कि हो सकता है कि चुनाव आयोग विधानसभा चुनाव के दौरान सपा का चुनाव निशान साइकिल सीज कर दे। वहीं अगर अखिलेश द्वारा इस्तीफा देने या शिवपाल गुट द्वारा समर्थन वापसी का कदम उठाया जाता है तो इस स्थिति का पूरा लाभ केंद्र सरकार उठाने की कोशिश करेगी, प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लग सकता है, चुनाव टल सकते हैं।
वरिष्ठ पत्रकार राम दत्त त्रिपाठी कहते हैं कि अब यह पूरी तरह साफ हो गया कि समाजवादी पार्टी दो खेमों में बंट चुकी है. एक अखिलेश गुट है, दूसरा मुलायम गुट है. आज अखिलेश की ताजपोशी के बाद इनकी तरफ से चुनाव आयोग को सूचना दी जाएगी, जिसके बाद चुनाव आयोग इस पर रिकॉर्ड तलब करेगा.
साल भर पहले से राम गोपाल पार्टी में कह रहे थे कि मुझे नई पार्टी बनानी है. इसी पर रोक लगाने के लिए मुलायम ने पहले अखिलेश को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाया था, फिर राम गोपाल को निष्कासित किया था.
पार्टी के नियम कानून और संविधान के अनुसार साथ ही चुनाव आयोग के रिकॉर्ड में अभी तक मुलायम सिंह यादव अध्यक्ष हैं. अब जब अखिलेश गुट दावा करेगा तो उसके बाद चुनाव आयोग रूल्स के हिसाब से परीक्षण करेगा. पार्टी में किसका दावा बनता है, उसके लिए एक प्रक्रिया निर्धारित है. पार्टी के जो विधायक हैं, सांसद हैं, हारे हुए उम्मीदवार हैं, उनकी राय लेने आदि की एक निश्चित प्रक्रिया है.
इस विवाद में समाजवादी पार्टी का चुनाव निशान साइकिल सीज हो सकता है क्योंकि इतनी जल्दी इसका निर्णय नहीं हो पाएगा. पहले चुनाव आयोग नोटिस जारी करेगा, फिर सुनवाई करेगा, तय करेगा. जिसमें काफी समय लगेगा. चुनाव आयोग के फैसले के खिलाफ भी दूसरा गुट हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट जा सकता हैं. एक लंबी प्रकिया है. जाहिर है तब तक विधानसभा चुनाव समाप्त हो चुके होंगे.
दूसरा खतरा ये भी है कि इस विवाद में अब सरकार गिर सकती है क्योंकि सरकार गिराने के लिए 20 से 25 विधायक ही चाहिए. अगर शिवपाल सहित 20 से 25 विधायक राज्यपाल के पास जाते हैं तो सरकार गिर सकती है. ऐसी स्थिति में एक संभावना ये भी बनती है कि चूंकि बीजेपी में नोटबंदी की वजह से बहुत से ऐसे लोग हैं, जो असहज हैं, अभी चुनाव नहीं चाहते हैं. तो ये भी कोशिश हो सकती है कि राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाए और चुनाव टल जाएं.
एक संभावना ये भी है कि अखिलेश भी इस्तीफा देने जा सकते हैं कि और खुद को कार्यवाहक मुख्यमंत्री बनाने की मांग कर सकते हैं. अगर ऐसा होता है तो गेंद गवर्नर और केंद्र के पाले में हैं. वहीं शिवपाल और अखिलेश इस तरह का कदम नहीं उठाते तो मामला चुनाव आयोग के पास ही रहेगा.