अशोकनगर की भारतीय जनता पार्टी में इन दिनों भूचाल आया हुआ है, या यूँ कहिये कि सब कुछ अप्रत्याशित हो रहा है। पिछले छह महीने में जहाँ पार्टी ने अपनी मूल विचारधारा को तिलांजलि देकर सिंधिया विरोध को ही अपनी मूल विचारधारा मान लिया है, वहीं शिवराज का सुशासन और मोदीजी का विकास का मंत्र कहीं पीछे छूट गया है। शायद जनता ने भाजपा के सुशासन और विकास के दावे को नकार दिया है, तभी तो पहले जिले में बमुश्किल एक विधानसभा मामूली अंतर से जिताई, फिर लोकसभा में बड़े अंतर से धूल चटा दी।
नगरीय निकायों ने भी भाजपा को निराश किया और अशोकनगर को छोड़कर सभी जगह निराशापूर्ण प्रदर्शन रहा। अब शायद भाजपा ने आत्ममंथन कर लिया है। कम से कम पिछले छह महीने में पार्टी के निर्णय तो यही दर्शा रहे हैं। पहले सिंधिया के कट्टर विरोधी जयभान सिंह पवैया को जिले का प्रभारी मंत्री बनाया। ये वही पवैया हैं जो लोकसभा चुनाव में बड़े अंतर से ज्योतिरादित्य सिंधिया से हारे थे। इस बड़ी हार में लगभग आधा अशोकनगर के हिस्से से आता है जिसमें एक भी विधानसभा भाजपा नहीं जीत पायी।
फिर यशोधरा समर्थक भाजपा जिलाध्यक्ष नीरज मानोरिया को हटा दिया। मानोरिया को अभी 20 माह पूर्व ही पवैया समर्थक भानू रघुवंशी को हटाकर बनाया था। अब दो साल पहले ही कांग्रेस से भाजपा में आये वीरेंद्र रघुवंशी को जिले के संगठन का प्रभारी बना दिया। सबसे ज्यादा वैचारिक दरिद्रपन तीसरे निर्णय में जान पड़ता है। वीरेंद्र रघुवंशी अभी शायद भाजपा को समझ ही नहीं पाए होंगे। जिले में पहचान सामाजिक स्तर पर ही है, भाजपा कार्यकर्ता पूछ रहा है कि कौन वीरेंद्र रघुवंशी? शायद इनकी योग्यता भी ज्योतिरादित्य सिंधिया को गाली देना ही है।
कार्यकर्ताओं और विचारधारा की दम पर राज करने वाली जिस भाजपा ने प्रदेश और देश में सरकार बनाई वो जिले में इतनी बेवस नज़र आकर हंसी का पात्र बनेगी यह देखकर स्वर्गीय कुशाभाऊ ठाकरे जैसे नेता उस दिन के लिए कोश रहे होंगे जब वह गाँव-गाँव, मंडल-मंडल जाकर कार्यकर्ताओं को विचारधारा और राष्ट्रप्रेम से जोड़कर पार्टी खड़ी कर रहे थे। लेकिन जो भी हो आजकल जिले में भाजपा में सफल होने का नया शॉर्टकट चल पड़ा है- "गाली"। सिंधिया को गाली। यही विचारधारा है और यही संगठन। अब इसके परिणाम जो भी हों लेकिन सुशासन और विकास स्वयं को ठगा सा महसूस कर रहे हैं।
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