नईदिल्ली। आज तिरंगे की शान के लिए 130 करोड़ भारतवासी अपने प्राणों की आहुति देने को भी तैयार हैं। देश का ध्वज हमेशा लहराता रहे, इसलिए हर साल हजारों जाने अनजाने लोग आज भी शहीद हो जाते हैं लेकिन आप जानकर चौंक जाएंगे कि जिस तिरंगे के लिए सारा देश मर मिटने को तैयार है। उसके निर्माता का नाम तक सरकार ने इतिहास में दर्ज नहीं किया। बड़ी ही चतुराई के साथ ना केवल उसका नाम छुपा दिया गया बल्कि अपने जमाने का अंतर्राष्ट्रीय विद्वान होने के बावजूद उसे घुट घुटकर मरने के लिए छोड़ दिया गया। कहते हैं कांग्रेस ने जान बूझकर केवल महात्मा गांधी को सारा श्रेय देने के लिए इतिहास से छेड़छाड़ की लेकिन आज आजादी के करीब 70 साल बाद, कई सरकारें बदल जाने के बाद भी उस महान युवक का नाम इतिहास में शामिल नहीं किया गया है।
ये लिखा है भारत के सरकारी इतिहास में
जी हां, अगर आप भारत सरकार की आधिकारिक वेबसाइट (india.gov.in) पर जाकर तिरंगे का इतिहास पढ़ेंगे तो वहां आपको लिखा मिलेगा कि “आंध्र प्रदेश के एक युवक ने” 1921 में लाल और हरे रंग के झंडे को महात्मा गांधी के सामने प्रस्तुत किया। आपने कई सरकारी प्रपत्रों में पढ़ा होगा कि विवाद की स्थिति में अंग्रेजी संस्करण को ही मान्य माना जाएगा। किसी को लग सकता है कि “तिरंगे के जनक” का नाम अनुवाद में खो गया है। लेकिन ऐसा नहीं है वेबसाइट के अंग्रेजी संस्करण पर भी गांधीजी के सामने झंडा प्रस्तुत करने वाले को “अ आंध्रा यूथ” (आंध्रा का एक युवक) लिखा गया है।
इस युवक ने प्रस्तुत किया था भारत का राष्ट्रीय ध्वज
देश के अलग-अलग हिस्सों में आजादी की लड़ाई लड़ने वाले सेनानी भिन्न-भिन्न तरह के ध्वज का इस्तेमाल करते थे। 1921 में आंध्र प्रदेश के रहने वाले पिंगली वेंकैया ने बेजवाड़ा (अब विजयवाड़ा) में हुए कांग्रेस कार्यसमिति के सत्र में महात्मा गांधी के सामने भारत के राष्ट्रीय ध्वज के तौर पर लाल हरे रंग को पेश किया। वेंकैया ने लाल और हरे रंग को भारत के दो बड़े समुदायों हिन्दू और मुसलमान के प्रतीक के तौर पर इस्तेमाल किया था। पिंगली वेंकैया ने ध्वज का आरंभिक स्वरूप गांधीजी के सामने पेश करने से पहले करीब 30 देशों के राष्ट्रीय ध्वजों का विश्लेषण किया था। लेकिन इतिहासकारों ने बड़ी ही चतुराई से वेंकैया का नाम छुपा लिया और “आंध्र प्रदेश के एक युवक ने” लिख दिया।
महात्मा गांधी ने सफेद रंग, लाला हरदयाल ने चरखा जोड़ा
महात्मा गांधी ने वेंकैया के दो रंगों के ध्वज में अन्य समुदायों के प्रतीक के तौर पर सफेद रंग का भी इस्तेमाल करने के लिए कहा। वहीं लाला हरदयाल ने वेंकैया को देश के प्रगति के सूचक चरखे के प्रयोग की भी राय दी। वेंकैया ने इन दोनों बड़े नेताओं के सुझाव को सम्मान देते हुए तिरंगा झंडा बनाया जिसके बीच में चरखा था। कांग्रेस ने 1921 में भारत के ध्वज के रूप में इस तिरंगे को अनौपचारिक तौर पर ध्वज स्वीकार कर लिया। देखते ही देखते ये झंडा पूरे देश के आजादी के सिपाहरियों का ध्वज बन गया।
1931 में लाल की जगह केसरिया रंग जोड़ा
26 जनवरी 1930 को कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज की घोषणा की। 1931 में तिरंगे में लाल रंग की जगह केसरिया को जगह देते हुए कांग्रेस ने इसे अपना आधिकारिक ध्वज स्वीकार कर लिया। तब तिरंगे का लोकप्रिय नाम “स्वराज ध्वज” था। आजादी से पहले देश के संविधान निर्माण के लिए गठित संविधान सभा के अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में जून 1946 में एक समिति का गठन हुआ जिसे भारत के भावी ध्वज का निर्धारण करना था। इस समिति में मौलाना अब्दुल कलाम आजाद, सरोजनी नायडू, सी राजागोपालचारी, केएम मुंशी और बीआर आंबेडकर भी शामिल थे।
समिति ने चरखे की जगह अशोक चक्र लगा दिया
समिति ने सुझाव दिया कि कांग्रेस के वर्तमान तिरंगे झंडे को ही मामूली परिवर्तन के साथ भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में स्वीकार कर लेना चाहिए। समिति ने चरखे की जगह अशोक स्तम्भ के धम्म चक्र को ध्वज पर जगह देने का सुझाव दिया। भारत के भावी प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 22 जुलाई 1947 को नए तिरंगे को देश के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में स्वीकार करने का प्रस्ताव रखा। नेहरू के प्रस्ताव को संविधान सभा ने सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया।
कौन थेे पिंगली वेंकैया
दो अगस्त 1876 को वर्तमान आंध्र प्रदेश में हनुमंतारायुडु और वेंकटरत्नम्मा के घर हुआ एक बालक का जन्म हुआ जिसका नाम पिंगली वेंकैया रखा गया। वेंकैया की शुरुआती पढ़ाई लिखाई मछलीपत्तनम में हुई। उन्होंने कोलंबो से सीनियर कैम्ब्रिज परीक्षा दी। उन्होंने लाहौर के एंग्लो वैदिक महाविद्यालय में उर्दू और जापानी भाषा की भी पढ़ायी की। 19 साल की उम्र में वेंकैया ब्रिटिश भारतीय सेना में सिपाही के तौर पर भर्ती हो गए। उन्होंने एंग्लो-बोअर युद्ध में हिस्सा लिया। इसी यद्ध के दौरान उनकी महात्मा गांधी से मुलाकात हुई थी।
सरकारी उपेक्षा का शिकार रहा एक प्रतिभाशाली युवक
भूविज्ञान और कृषि क्षेत्र से पिंगली वेंकैया को विशेष प्रेम था। वो हीरे की खदानों के विशेषज्ञ थे इसलिए उन्हें ‘डायमंड वेंकैया’ भी कहा जाता था। हीरे के अलावा वेंकैया को कपास से भी मोहब्बत थी। उन्होंने कपास की विभिन्न किस्मों पर शोध किया था। कंबोडियाई कपास की एक किस्म पर उन्होंने शोध पत्र भी प्रकाशित करवाया था। कपास प्रेम के कारण उन्हें ‘पट्टी (कपास) वेंकैया’ भी कहा जाता था। गांधीवादी वेंकैया ने पूरा जीवन सादगी से गुजारा। चार जुलाई 1963 को आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा में एक झोपड़ी में उनका निधन हो गया। आजादी के बाद चार दशकों तक वेंकैया सरकारी उपेक्षा के शिकार रहे। साल 2009 में भारत सरकार ने उनकी स्मृति में डाक टिकट जारी किया लेकिन सरकारी वेबसाइट पर आज भी वो महज “आंध्र प्रदेश का एक युवक” बने हुए हैं।