उपदेश अवस्थी @लावारिस शहर। 17वीं सदी तक राजा अपनी प्रजा की रक्षा के लिए 2 प्रमुख काम करते थे। पहला शत्रु राजा की सेना का वध करके प्रजा की सुरक्षा और दूसरा हिंसक जानवरों का शिकार करके जनता के प्राणों की रक्षा। आज 21वीं सदी में हिंसक जानवर से ज्यादा खतरनाक है रिश्वतखोर सरकारी कर्मचारी। यदि वो चिकित्सा सेवाओं में है तो ऐसे कर्मचारी को आदमखोर मान लेना चाहिए।
ये दर्द ये गुस्सा इसलिए क्योंकि मौजूदा कानून जानलेवा रिश्वतखोरी को रोक पाने में नाकाम हैं। मप्र के गुना जिले में आने वाले जामनेर स्वास्थ्य केंद्र में एएनएम एवं दाई ने एक प्रसव पीड़िता को रात 2 बजे इसलिए धक्के देकर भगा दिया क्योंकि उसके पति ने 5000 रुपए रिश्वत नहीं दी थी। पीड़िता के साथ आई आशा कार्यकर्ता और मौजूद ग्रामीण इसके गवाह हैं। हंगामा भी हुआ और एएनएम को सस्पेंड भी कर दिया गया, लेकिन क्या यह सजा पर्याप्त है। ऐसी घटनाएं हर रोज होतीं हैं। ऐसी कार्रवाईयां भी हर रोज होती हैं। सब ऐसा ही चलता रहता है। दशकों से चलता आ रहा है, लेकिन अब बस।
रात 2 बजे कड़कड़ाती सर्दी में जब तापमान मात्र 9 डिग्री था। प्रसव पीड़िता को धक्के देकर अस्पताल से निकाल देना क्या हत्या के प्रयास जितना संगीन अपराध नहीं है, लेकिन एक सरकारी कर्मचारी ने किया है, इसलिए कानून बदल जाता है। सस्पेंड किया गया है। जांच होगी। गवाह बदल जाएंगे। पीड़िता को मुआवजा दे देंगे और महीने भर बाद एएनएम फिर बहाल हो जाएगी। फिर वो आदमखोर एएनएम किसी दूसरी प्रसूता पर जानलेवा रिश्वतखोरी का हमला करेगी और करती रहेगी।
देश बदल रहा है, तो क्या ये जानलेवा रिश्वतखोरी के लिए सजाओं के कानून बदल नहीं दिए जाने चाहिए लेकिन इससे पहले यह जान लेना जरूरी है कि कहीं इन्हे वेतन तो कम नहीं मिल रहा। हम टेक्स देते हैं, अपनी सुविधाओं के लिए। आप कुछ सड़कें मत बनाइए, मेट्रो ट्रेन 10 साल बाद भी आएगी तो चलेगा। हमें हवाई जहाज भी नहीं चाहिए। प्रिय सरकार, आप इन्हे इतना वेतन दीजिए कि इनकी आखें चुंधिया जाएं। प्राइवेट संस्थानों से भी 3 गुना ज्यादा, लेकिन एक कड़ा कानून बनाइए कि यदि इलाज में डॉक्टर, नर्स या दाई से लापरवाही की तो सजा ऐसी हो कि रूह कांप जाए। इस सजा के डर से कोई बेईमान ना हो पाए।