भोपाल। बचे खुचे सक्रिय कांग्रेसियों को अब पूरा भरोसा हो गया है कि मप्र में कांग्रेस के लिए तीनों दिग्गज (दिग्विजय सिंह, कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया) हानिकारक हैं। लोग निराश हैं और अब उन्हे एक ही युक्ति सूझ रही है कि यदि मप्र में कांग्रेस को बचाना है तो एक साथ तीनों दिग्गज व खुद को इनके समकक्ष मानने वाले सुरेश पचौरी जैसे नेताओं को प्रदेश की राजनीति से बेदखल कर देना चाहिए।
अभी विधानसभा चुनाव में लगभग दो साल बचे हैं, लेकिन बड़े नेताओं की बेरुखी से नाराजगी बढ़ रही है। मांग हो रही है कि दूसरी पंक्ति के नेताओं को कमान सौंप दी जाए। जमीन पर कांग्रेस लगातार कमजोर हो रही है। गुटबाजी हावी है और मप्र से ज्यादा दिल्ली की राजनीति रास आती है इन बड़े नेताओं को। जब भी किसी बड़े मौके पर उनको बुलाया जाता है तो वे कन्नी काट लेते हैं या बहाने बना लेते हैं। जबकि कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया तो अगले चुनाव में सीएम कैंडिडेटशिप के दावेदार हैं।
नोटबंदी को लेकर कांग्रेस ने जोर-शोर से विरोध प्रदर्शन शुरू किया था। कांग्रेस का हताश कार्यकर्ता सड़क पर उतर आया था। बेजान पड़ी कांग्रेस में जान नजर आने लगी थी। नोटबंदी को लेकर राष्ट्रीय नेतृत्व के निर्देश पर कांग्रेस ने जनवेदना सम्मेलन का आयोजन भोपाल में किया था। इसमें शामिल होने के लिए प्रदेश कांग्रेस ने पूर्व केंद्रीय मंत्री कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया, सुरेश पचौरी और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को आमंत्रण भेजा था। बस, सुरेश पचौरी ही आ सके। दिग्विजय और ज्योतिरादित्य ने गोवा चुनावों का हवाला दिया तो कमलनाथ को विदेश जाना था। कुल मिलाकर ये नहीं आए।
प्रदेश नेतृत्व यह सोच रहा था कि ये आएंगे तो कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ेगा। भाजपा सरकार के लिए भी परेशानी बढ़ेगी। नहीं आने से सभी निराश हुए। अपनी बेबाक राय रखने के लिए जाने जानेवाले पूर्व मंत्री और इंदिरा गांधी जन्म शाताब्दी समारोह के संयोजक महेश जोशी ने तो कहा है कि अब हालात ये हो गए हैं कि पार्टी के दूसरी पंक्ति के नेताओं को तैयार करना चाहिए। क्योंकि, बड़े नेता आते नहीं हैं। उनके भरोसे हर काम सवालों के घेरे में आ जाता है। कब तक पार्टी बड़े नेताओं की उम्मीद पर टिकी रहेगी।
पूर्व सांसद और एआईसीसी के सचिव सज्जन सिंह वर्मा भी अपनी पार्टी के नेताओं को आईना दिखाने से नहीं चूके। उनका मानना है कि दूसरी पंक्ति के नेताओं का सीधा जुड़ाव जनता और कार्यकर्ताओं से है। इसलिए इन्हीं नेताओं को लीडरशिप में ज्यादा महत्व मिलना चाहिए। हालांकि, संगठन में जिम्मेदार पदों पर बैठे नेता इन सवालों से कन्नी काटते नजर आते हैं। कांग्रेस के प्रवक्ता केके मिश्र कहते हैं कि बड़े नेताओं का मार्गदर्शन और उनकी जब जैसी जरुरत होती है, प्रदेश कांग्रेस को उनका साथ मिलता है। समय के साथ दूसरी पंक्ति के नेता भी परिपक्व हो रहे हैं और उन्हें भी जरुरत के हिसाब से जिम्मेदारी दी जा रही है।