शोएब सिद्दीकी | 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ वैसे देश की आजादी में सभी देशवाशियो का योगदान है। परंतु उस समय मुख्यतः दो दल थे जिन्होंने अंग्रेजो से लड़ाई लड़ी एक था नरम दल (महात्मा गांधी के नेतृत्व में) और दूसरा था (चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व में) इन दोनों ने अपने अपने तरीके से लड़ाई लड़कर इस देश को गुलामी के बंधनों से मुक्ति दिलाई। यदि एक दल के नही होने की कल्पना करे तो शायद आजादी कब मिल पाती किसी को अनुमान नही होगा। अब साथियो आपके मन में ये प्रश्न आ रहा होगा की ये तो सभी को पता है और इससे सपाक्स का क्या सम्बन्धा, तो में मुख्य बिंदु पर आ जाता हूं। 1947 में देश आजाद तो हुआ पर अंग्रेजो की दासता से, उसके बाद हमारे संविधान निर्माताओं ने इस आरक्षण की बेड़ियों से योग्यता और कुशलता को जो गुलाम बना रखा है उससे हम आज तक मुक्त नही हुए परिणाम स्वरूप देश में उच्च निर्णय लेने वाले आज अयोग्य हैं या यूं कहें कि उनसे भी अधिक योग्य आरक्षण के दावानल में जल कर भस्म हो गए है।
साथियो इस गुलामी से आजादी के लिए हमारे कुछ साथियो ने न्यायिक विजय हासिल की है, एक पड़ाव तक। अब अंतिम पड़ाव पर जीत हासिल करना बाकी है, किंतु जिस विशाल संवर्ग के भविष्य हेतु जिन वीरों ने लड़ाई प्रारम्भ क़ी आज उन्हें इस समाज के पूर्ण सहयोग की आवश्यकता है।
साथियो में पुनः इसी क्रम में उस बिंदु पर आता हूं की जिस प्रकार आजादी की लड़ाई में दो दल थे ऐसे ही वर्तमान में इस लड़ाई के लिए भी दो दल चाहिए। एक दल अधिकारियों और कर्मचारियों (नरम दल) का काफी समय से सक्रिय और अपने व्यापक और मजबूती की और सतत बड़ रहा है परंतु दूसरा दल (सपाक्स समाज संस्था) जो की गरम दल की भूमिका में स्थापित हो चुका है उसकी मजबूती हेतु हमे भी जुट जाना है।
मित्रों नरम दल में जुटे साथी आदर्श आचरण संहिता से बंधे हुए हैं, इसलिए हमारी लड़ाई एक दायरे में हो पायेगी परन्तु हमारे दूसरे दल में सभी साथी जनतंत्र के दिग्गज और कुशल नेतृत्वकर्ता हैं। इसलिए इस दल को भी आर्थिक और सामाजिक स्तर पर मजबूत करने का प्रथम प्रयास हमारा ही होना चाहिए इसलिए सर्वप्रथम हमारे घर, परिवार, रिश्तेदारो और मित्रो को उसकी सदस्यता तन, मन और धन से ग्रहण अवश्य करावे। मै किसी भी पार्टी या नेता विशेष का विरोधी नहीं हूं पर जो भी हमारे संवर्ग के हितों पर कुठाराघात करेगा हम उसे बख्शेगे नही।
2018 में चुनाव है, इसके पूर्व हमे इतनी बड़ी शक्ति के रूप में उभरना है की यदि हमारे बनाये घोषणा पत्र (आज पार्टियां अपना घोषणा पत्र बनाती है पहली बार हम बनाकर उन्हें देंगे तभी मतदान करेंगे) पर कोई प्रत्याशी या पार्टी हा नही करे तो उसका विकल्प सिर्फ सपाक्स ही बनेगा।
हम हर सरकार की उस नीति का विरोध करेंगे जो कुशलता और योग्यता के ऊपर पैर रखकर अयोग्य और अर्धकुशल व्यक्तियो के हाथों में देश की व्यवस्था सौंप दे। साथियो जब हम अप्रशिक्षित ड्रायवर के कारण बस में नही बैठते तो फिर इन अप्रशिक्षित लोगो के हाथों में देश कैसे दे दे।
ये हर भारतीय नागरिक का नैतिक दायित्व और कर्तव्य है कि प्रशासनिक क्षमता में जब भी शासन की नीतियों से निर्बलता आये हम उस नीति का पुरजोर विरोध करे। अंततः यही कहूंगा कि अब हम निर्णायक मोड़ पर आ गए है इसलिए अपना सर्वस्व इस संस्था को सौंप देवे।
जय जय सपाक्स, घर घर सपाक्स