नईदिल्ली। भारत की ओर से स्वास्थ्य सेवा पर किए जाने वाले खर्च को कुछ ब्रिक्स एवं दक्षेस देशों से भी कम बताते हुए एक स्वास्थ्य संस्था ने केंद्र से कहा है कि वह आगामी बजट में परिवार नियोजन समेत स्वास्थ्य क्षेत्र में निवेश को बढ़ाए।
स्वास्थ्य एवं परिवार नियोजन के लिए बजट आवंटन बढ़ाने को सबसे बड़ी प्राथमिकता बताते हुए पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया ने कहा है कि इस क्षेत्र में देश की ओर से कम खर्च किए जाने का परिणाम बढ़ती असमानताओं, स्वास्थ्य सेवाओं तक अपयार्प्त पहुंच और खराब गुणवत्ता के रूप में सामने आया है।
पीएफआई की कार्यकारी निदेशक पूनम मुत्तरेजा ने कहा, भारत स्वास्थ्य सेवा पर अपनी जीडीपी का महज 1.3 प्रतिशत ही खर्च करता है। यह आंकड़ा ब्रिक्स देशों की तुलना में कहीं कम है। ब्राजील स्वास्थ्य सेवा पर लगभग 8.3 प्रतिशत, रूसी संघ 7.1 प्रतिशत और दक्षिण अफ्रीका लगभग 8.8 प्रतिशत खर्च करता है।
उन्होंने कहा कि दक्षेस देशों में, अफगानिस्तान 8.2 प्रतिशत, मालदीव 13.7 प्रतिशत और नेपाल 5.8 प्रतिशत खर्च करता है। पीएफआई ने कहा कि 12वीं पंचवषीर्य योजना वर्ष 2017 तक स्वास्थ्य पर जीडीपी का 2.5 प्रतिशत खर्च करने की सिफारिश करती है।
वर्ष 2015-16 और 2016-17 के बीच सरकार की ओर से स्वास्थ्य मंत्रालय को किए गए आवंटनों में 13 प्रतिशत की वद्धि हुई थी लेकिन मंत्रालय के बजट में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के हिस्से में गिरावट आई और यह 48 प्रतिशत हो गया। बजट आवंटन की प्रवत्ति दशार्ती है कि परिवार नियोजन के प्रतिशत का अंश 2013-14 और 2016-17 में समान रहा है। यह स्वास्थ्य मंत्रालय के कुल बजट का दो प्रतिशत रहा है।
उन्होंने कहा, आर्थिक विकास के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए स्वास्थ्य में निवेश अहम है। स्वास्थ्य सेवा की घरेलू मांग की आपूर्ति करने वाले स्वास्थ्य क्षेत्र में नए रोजगार देने की क्षमता है। स्वास्थ्य क्षेत्र में प्रशिक्षित श्रमशक्ति की भारी कमी है। निवेश बढ़ाने से स्वास्थ्य सेवाओं की कीमतें भी कम होंगी और इससे चार प्रतिशत की मध्यावधि मुद्रास्फीति के लक्ष्य को बनाए रखने में भी मदद मिलेगी।
मुत्तरेजा ने कहा, आगामी बजट घोषणा में (स्वास्थ्य क्षेत्र में और विशेषकर परिवार नियोजन में) पयार्प्त एवं उचित संसाधनों के निवेश से देश के भविष्य के लिए सकारात्मक परिणाम आएंगे।