राकेश दुबे@प्रतिदिन। चुनावों के बीच सरकार किसी वर्ग, समुदाय के लिए राहत का निर्णय करती है तो विपक्ष हमेशा उस पर प्रश्न उठाता है। चुनाव में जहां एक-एक वोट कीमती है, वहां विपक्ष को लगता है कि राहत से वह वर्ग या समुदाय प्रभावित होकर उस पार्टी को अपना मत दे सकता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मंत्रिमंडल ने दो महत्त्वपूर्ण निर्णय लिए। एक निर्णय किसानों के कर्ज पर ब्याज माफी से संबंधित है तो दूसरा बुजुर्गों की पेंशन पर 8 प्रतिशत ब्याज की गारंटी से जुड़ा है। जिन राज्यों में चुनाव हैं, वहां किसानों की बड़ी संख्या है। अप्रैल, 2016 से 30 सितम्बर, 2016 के बीच लिए गए उनके कर्ज पर ब्याज माफी से उनको कुछ राहत मिलेगी।
हालांकि सरकार का यह फैसला नोट वापसी के बाद किसानों को आई परेशानियों को ध्यान में रखते हुए लिया गया है लेकिन चुनाव का समय है तो इसका राजनीतिक निहितार्थ निकाला ही जाएगा। इसी तरह, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने 17 अति पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का फैसला किया। हालांकि उस पर अदालत का डंडा चल गया है, लेकिन यह तो कहा ही जाएगा कि अखिलेश ने यह फैसला ऐन चुनाव के पूर्व लेकर उन जातियों को अपने पक्ष में करने यानी उनका मत लेने के लिए किया।
भारतीय राजनीति के सामने यह प्रश्न लंबे समय से मुंह बाये खड़ा है कि चुनाव की घोषणा के बाद ऐसे निर्णय किए जाने चाहिए या नहीं जिनसे मतदाताओं के प्रभावित होने की संभावना हो? दलों द्वारा सर्वसम्मति से स्वीकृत आचार संहिता की भाषा इसका निषेध करती है।
प्रश्न यह भी है कि यदि देश में सरकारें हैं, तो वे इतने समय तक आवश्यक कदम कैसे नहीं उठाएंगी? यह ऐसा प्रश्न है जिसका तार्किक उत्तर किसी के पास नहीं। शीर्ष अदालत ने 1 फरवरी को बजट पेश करने के निर्णय को रोकने की अपील वाली याचिका खारिज करते हुए कहा है कि देश में हर समय चुनाव चलते रहते हैं तो फिर बजट कभी पेश ही नहीं हो सकता। वास्तव में सरकारें हैं तो कुछ जरूरी निर्णय करने होंगे।
यहां पर मतदाताओं के विवेक और जागरूकता का प्रश्न सामने आ जाता है। मतदाता इतने विवेकशील हों कि ऐसे निर्णयों से प्रभावित हुए बिना मतदान करें। दूसरे, राजनीतिक दल स्वयं को ऐसी नैतिक परिधि में बांधें कि सत्ता हाथ में हो तो उसका उपयोग वोट लेने के लिए न करें किंतु इससे बचने का जो सबसे बेहतर रास्ता है, वह है लोक सभा एवं विधान सभाओं का चुनाव एक साथ संपन्न करा लेना।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क 9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com
पूर्व में प्रकाशित लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक कीजिए