सुधीर ताम्रकार/बालाघाट। लिव-इन-रिलेशनशिप भले ही भारत के मध्यमवर्गी समाज के लिए नया शब्द हो परंतु यहां के नक्सल प्रभावित एक गांव में तो यह प्राचीन परंपरा है। मात्र 13 या 14 साल की लड़की गांव के ही किसी भी लड़के साथ लिव-इन-रिलेशन में रहने लगती है। उनके बच्चे होते हैं और वो भी इसी तरह लिव-इन-रिलेशन बनाते हैं। यहां ना तो कोई बारात आती है और ना ही जाती है। दूसरे गांव से रोटी बेटी का कोई संबंध नहीं होता, क्योंकि यह नक्सल कब्जे वाला गांव है।
मामला जिले के अतिनक्सल प्रभावित गांव दुगलई का है। जिला मुख्यालय से करीब 50 किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत बिठली के अंतर्गत ग्राम दुगलई में शादी ब्याह को लेकर कोई परंम्परा नही है। यहां रीति रिवाज के नाम पर कोई रस्म अदायगी नही होती। गांव में ही युवक अपने मनपसंद की युवतियों को पसंद कर लेते है।
यह गांव बुनियादी सुविधाओं और विकास की मुख्यधारा से कटा हुआ है। ग्रामीणें ने बताया की आर्थिक तंगी के चलते वे लोग ऐसा करने के लिये मजबूर हैं। उस गांव में बाहर के लोग न तो कोई लडकी देते है और न ही यहां की लडकी को मांगते है आपसी रजामंदी की यह परम्परा कई पीढियों से चली आ रही है।
हैरानी की बात यह कि केवल 14-15 वर्ष की उम्र में ही युवक-युवती आपसी रजामंदी से रहना शुरू कर देते है। 18-20 वर्ष की उम्र में 2-3 बच्चों के मा-बाप बन जाते है। यह कोई किस्सा कहानी नहीं है अपितू उस गांव की सच्चाई है जो कि प्रशासन के तमाम दावों को खोखला साबित कर रही है।
गांव के लोग आर्थिक तंगी के चलते शादी-विवाह नही करते युवक-युवतियां महत 14-16साल की उम्र में ही आपसी रजामंदी से साथ रहना शुरू कर देते है। इसकी जानकारी पंचायत को भी दी गई है- कमली बाई (पंच)
आंगनबाडी कार्यकर्ता गायत्री गोस्वामी के अनुसार वह पिछले 10 वर्षो से इस गांव में आंगनबाडी में कार्यकर्ता के रूप में अपनी सेवायें दे रही है। यहां मेरे कार्यकाल में अभी तक कोई शादी ही नही हुई है। मेरे द्वारा इस कुप्रथा को खत्म कर सामाजिक स्तर पर दाम्पत्य जीवन गुजारने के लिये प्रयास कियेे जा रहे है।
बालाघाट कलेक्टर श्री भरत यादव ने अवगत कराया की इसकी जानकारी अपासे मिल रही है बुनियादी समस्याओं के निराकरण के लिये शीध्र ही जनसमस्या निवारण शिविर का आयोजन करवाया जायेगा। इसके लिये बैहर एसडीएम को निर्देशित कर दिया गया है वहां के ग्रामीणों को मुख्यमंत्री कन्यादान योजना का लाभ दिलाया जायेगा।