जबलपुर। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने जबलपुर स्थित सनातन धर्मसभा कन्या उच्चतर माध्यमिक शाला गोरखपुर और सतपुला उच्चतर माध्यमिक शाला जीसीएफ ईस्टेट के शिक्षकों का वेतन अटकाए जाने संबंधी नियम को कठघरे में रखने वाली याचिका को बेहद गंभीरता से लिया। इसी के साथ राज्य शासन, स्कूल शिक्षा विभाग और स्कूल प्रबंधन को नोटिस जारी कर जवाब-तलब कर लिया गया है। इसके लिए चार सप्ताह का समय दिया गया है।
बुधवार को कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजेन्द्र मेनन व जस्टिस एचपी सिंह की युगलपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। इस दौरान याचिकाकर्ता पूनम सेठी सहित अन्य की ओर से अधिवक्ता रवीन्द्र गुप्ता ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि याचिकाकर्ता विगत वर्षों से उक्त दोनों स्कूलों में सेवाएं देते चले आ रहे हैं। उनकी परेशानी का कारण बना है राज्य शासन का 28 फरवरी 2015 को जारी एक आदेश। इसके तहत 1 अप्रैल 2000 के बाद नियुक्त शिक्षकों को शासकीय अनुदान राशि से वेतन प्रदाय किए जाने पर रोक लगा दी गई है। इस नियम का आधार सुप्रीम कोर्ट का शरीक अली और राशिद बानो बनाम एंटोनी डीसा प्रकरण में पारित आदेश बनाया गया है। जबकि वस्तुस्थिति यह है कि सुप्रीम कोर्ट के मूल आदेश की मनमानी व्याख्या की गई है। वास्तव में सुप्रीम कोर्ट की मंशा अनुदान राशि से वेतन प्रदाय करने पर अंकुश की कतई नहीं थी। ऐसे में राज्य का दुर्भाग्यजनक नियम रद्द किए जाने योग्य है।
विधिवत नियुक्ति के बावजूद वेतन नहीं
अधिवक्ता रवीन्द्र गुप्ता ने कोर्ट को अवगत कराया कि याचिकाकर्ताओं को जिला शिक्षा अधिकारी के आदेश से विधिवत नियुक्त किया गया था। इसके बावजूद पहले तो आधा वेतन दिया गया और अब वेतन के बिना काम करने विवश किया जा रहा है। चूंकि शिक्षक उम्रदराज हो गए हैं, अतः बेरोजगारी की स्थिति में वे कहीं के नहीं रहेंगे। उनके परिवार का पालन-पोषण संकटग्रस्त हो जाएगा। इसीलिए अनुचित नियम की संवैधानिक वैधता को कठघरे में रखते हुए हाईकोर्ट की