नई दिल्ली। भारतीय राजनीति में विदेशी दखल को लेकर बड़ा खुलासा हुआ है। बताया जा रहा है कि सोवियत संघ भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी समेत कई कांग्रेसी नेताओं को चुनाव लड़ने के लिए छुपकर पैसे देता था। ताकि वो जीतें और भारत में सोवियत संघ की मर्जी वाली सरकार बने। खबर के अनुसार सोवियत संघ ने कम्यूनिस्ट संगठन सीपीआई और सीपीएम के नेताओं को भी गुपचुप पैसे दिए। इतना ही नहीं भारत के एक ऐसे नेता को भी सोवियत संघ ने चुपचाप खरीद लिया था जो इंदिरा गांधी के लिए चुनौती बन गया था।
इकनॉमिक टाइम्स के पत्रकार मनु पब्बी की रिपोर्ट के अनुसार अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के पुराने गोपनीय दस्तावेजों को हाल ही में सार्वजनिक किए जाने से यह जानकारी मिली है। इनमें कहा गया है कि इंदिरा गांधी के शासन में उनके 40 पर्सेंट तक सांसदों को सोवियत संघ से राजनीतिक चंदा मिला था। इससे पहले 2005 में रूसी गुप्तचर एजेंसी केजीबी के लीक हुए गोपनीय दस्तावेजों में भी इसी तरह की जानकारी मिली थी।
सीआईए की सोवियत संघ के भारत पर प्रभाव को लेकर दिसंबर 1985 की रिपोर्ट में कहा गया है कि सोवियत संघ राजनीतिक दलों और व्यक्तियों को छिपाकर रकम देने के जरिए भारतीय राजनीतिक प्रक्रिया में बड़ी भूमिका रखता है। रिपोर्ट के अनुसार, 'इंदिरा गांधी की पिछली सरकार में कांग्रेस के लगभग 40 पर्सेंट सांसदों को सोवियत संघ से राजनीतिक चंदा मिला था। सोवियत संघ का दूतावास कांग्रेस के नेताओं को छिपकर रकम देने सहित कई खर्चों के लिए बड़ा रिजर्व रखता है।
इससे पहले केजीबी के एक पूर्व जासूस वासिली मित्रोकिन की 2005 में आई एक किताब में भी इसी तरह के दावे किए गए थे। वासिली सोवियत संघ से हजारों गोपनीय दस्तावेज चुराकर देश से बाहर ले गए थे। उनमें दावा किया गया था कि इंदिरा गांधी को कांग्रेस पार्टी के लिए सूटकेसों में भरकर रकम भेजी गई थी और केजीबी ने 1970 के दशक में पूर्व रक्षा मंत्री वी के मेनन के अलावा चार अन्य केंद्रीय मंत्रियों के चुनाव प्रचार के लिए फंड दिया था।
सीआईए के दस्तावेजों में आरोप लगाया गया है कि सोवियत संघ ने भारतीय कारोबारियों के साथ समझौतों के जरिए कांग्रेस पार्टी को रिश्वत दी थी। इनमें सीपीआई और सीपीएम को भी सोवियत संघ से फंडिंग मिलने की बात कही गई है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि सभी राजनेताओं को वित्तीय मदद नहीं दी गई। इसमें ऐसे व्यक्तियों का जिक्र है जिन्होंने सोवियत संघ के साथ कथित तौर पर सौदे किए थे। इनमें इंदिरा गांधी को चुनौती देने की संभावना रखने वाले एक राजनेता को भी नाम है।
उस समय सीआईए का आकलन था कि केजीबी की ओर से फंड दिए जाने के कारण बहुत से नेताओं तक सोवियत संघ की पहुंच थी और इससे उसे भारतीय राजनीति को प्रभावित करने में मदद मिली थी। इससे पहले केजीबी के लीक हुए दस्तावेजों में भी भारत को तीसरी दुनिया की सरकारों में केजीबी की घुसपैठ का एक मॉडल बताया गया था। इन दस्तावेजों में सरकार में केजीबी के बहुत से सूत्र होने की बात कही गई थी।