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(1)इतने बड़े स्तर पर बिना वेतन निर्धारण किये बिना, कार्य एवं उत्तरदायित्वों का निर्धारण किये बिना, एवं कैडर परिभाषित किये बिना ही भर्ती की गयी | (2) यहाँ पर गलती में सुधार करने के लिए 04 वर्ष लगा दिए गए ऐसे लोगो ने जो निछले स्तर से त्वरित कार्य करने की अपेक्षा रखते है | ऐसे कार्यालय ने जहा से पुरे राज्य के लिए प्रारंभिक शिक्षण से सम्बंधित आदेश जारी किये जाते है | (3) आदेश जारी किये भी तो कोई भी इस आदेश से संतुष्ट होना तो दूर सहमत तक नहीं हो सका बजाय उनके जिन्होंने आदेश बनवाया एवं जारी किया क्योंकि इस निर्णय को इस तरह ही लागु करना था तो फिर 04 वर्ष क्यों लगा दिए | यह निर्णय किसी प्रकार से तर्कों से परे है - इसमें केवल पुर्वा गृह ही नजर आता है | (3) क्योंकि अगर विभाग सविंदा नियमों के अनुसार प्रति वर्ष 10% की दर से भी मासिक परिलब्धियों में वृद्धि करता तो आज विकासखंड एमआईएस समन्वयकों का वेतन 22000 प्रति माह हो गया होता और विभाग इतना हंसी का पात्र भी नहीं होता | (4) ग्रेड पे का निर्धारण ही किया गया तो फिर इन्हें अध्यापक संवर्ग का ग्रेड पे क्यों नहीं दिया गया जो की विकासखंड अकादमिक समन्वयक के पद पर प्रतिनियुक्ति के माद्यम से उसी कार्यालय में जहा विकासखंड एम आई एस समन्वयक पदस्थ है के साथ समान कैडर पर कार्य करते है | (4) अगर शैक्षणिक योग्यता को आधार बनाया गया है तो उपयंत्रियों से कम ग्रेड पे कैसे दिया जा सकता है | (5) यदि उपर्युक्त सभी तथ्यों से परे विश्लेषण कर निर्णय लिया गया है और शायद इसी विभाग में जिले स्तर पर कार्य कर रहे अमले के स्थापना की भौतिक संरचना हो या फिर अन्य विभागों जैसे ई-गर्वर्नेंस में लागु किये गए जिले एवं विकासखंड स्तर पर स्थापना की भौतिक संरचना हो की भी कही कोई समानता नहीं दिखाई देती है | (6) अगर RSK के पास इतना बजट नहीं है की विकासखंड एमआईएस समन्वयक को नियमानुसार वेतन दिया जा सके और विकासखंड एमआईएस समन्वयक और डाटा एंट्री ऑपरेटर के स्तर(पद) में कोई अंतर ही नहीं रखना था तो तो विभाग ने एक विकासखंड एमआईएस समन्वयक की बजाय दो ऑपरेटर की नियुक्ति क्यों नहीं की ? (7) अगर RSK के पास इतना बजट नहीं है तो अन्य पदों के वेतन निर्धारण में तुलनात्मक रूप से इतनी वृद्धि कैसे की गयी जिनकी भर्ती दिनांक के अनुसार 02 साल की भी सेवा अवधी नहीं है |
उपरोक्त सभी तथ्य सही ना हो परन्तु विचारणीय तो है तो क्या RSK एवं इसका सञ्चालन करने वालें तथा पार्श्व में निति निर्धारण का कार्य करने वाले लोग मानसिक स्तर से इतने बूढ़े हो चुके है की उन्हें अपनी गलती दिखाई ही नहीं दे रही है अथवा गलती होने पर भी इसे अपने अहम् की पूर्ति के लिए सुधार न कर अपनी मर्जी के अनुसार जो की तर्कसंगत नहीं हो फिर भी लागू किया जा रहा है | यहाँ प्रश्न ये है की इतने बड़े स्तर पर इस तरह कार्य करना- निर्णय लेने में विलम्ब, तथ्यों को नकारते हुए निर्णय लेना, इतने सारे लोगो के साथ इतने दिनों तक शोषण करना(उचित वेतन नहीं देना), क्या यह अपनी शक्ति एवं शासकीय संसाधन का दुरुपयोग नहीं है क्या इससे किसी की भी कार्य क्षमता प्रभावित नहीं हुयी है ? क्या यह अपने कर्तव्यों का निर्वाह सही तरीके से नहीं करना नहीं है? क्या इतने बड़े स्तर पर होने वाली गलतियों को यूंही छोड़ दिया जाये ? क्या इस गड़बड़ी एवं किये गये अन्याय के लिए कोई जिम्मेदार है अगर है तो क्या उनमे इतना साहस है की अपनी गलती को स्वीकार कर सुधार करे जिन लोगो के साथ अन्याय हुआ उनके साथ न्याय करे जिससे इस विभाग की विश्वसनीयता बनी रहे साथ ही ऐसा आदेश अथवा निर्णय हो की जिससे सभी अन्य कर्मचारी भी सहमत हो और वो लोग संतुष्ट हो जिनसे सम्बंधित आदेश है साथ ही आदेश को कोई चुनौती ना दे सके और मिशन की मूल अवधारणा की प्रतिष्ठा बनी रहे | इस समय तो उम्मीद ही की जा सकती है की सभी लोग अपना कार्य अपने स्तर पर सर्वश्रेष्ठ तरीके से करे |