भोपाल। मध्यप्रदेश के 90 फीसदी सरकारी और निजी अस्पतालों में एक्सरे, सीटी स्कैन, मेमोग्राफी और डेंटल एक्सरे कराना खतरे का काम है। इनसे निकली रेडिएशन शरीर को धीमे जहर की तरह तोड़ती है जिनके न तो कोई लक्षण दिखाई देते हैं और न ही किसी जांच में तत्काल इनकी पुष्टि होती है।
ऐसा परमाणु ऊर्जा नियामक मंडल (एईआरबी) की गाइडलाइन पालन नहीं के कारण हो रहा है जिसमें शिशुओं और गर्भवती महिलाओं को सबसे अधिक नुकसान हो रहा है। यह बात मध्यप्रदेश के भोपाल, इंदौर समेत चार शहरों में सरकारी और निजी अस्पतालों की जांच करने पहुंची एईआरबी के सीनियर वैज्ञानिक बीके सिंह ने चर्चा में कही।
एईआरबी की टीम पिछले दिनों प्रदेश के सरकारी, निजी अस्पतालों का निरीक्षण किया है। जिसमें टीम ने पाया है कि हमीदिया, जेपी समेत बड़े-बड़े अस्पतालों में एईआरबी की गाइडलाइन का उल्लंघन हुआ है। जिसका सीधा असर मरीजों पर पड़ रहा है। यहां तक की सिस्टम में खामी के चलते रेडियोग्राफर तक प्रभावित हो रहे हैं। इसी को लेकर टीम ने शुक्रवार जेपी अस्पताल में रेडिएशन से बचाव पर एक कार्यशाला की। जिसमें एईआरबी के सीनियर वैज्ञानिक बीके सिंह ने कहा दो दिन में 25 सरकारी और निजी अस्पतालों का सर्वे किया।
इन अस्पतालों में चल रहे एक्सरे, सीटी स्कैन, मेमोग्राफी और डेंटल एक्सरे को देखा गया। जिसमें एमवाय इंदौर, एम्स भोपाल व दो निजी अस्पतालों में ही गाइडलाइन के तहत जांचे होना पाया है बाकी में बड़े स्तर पर कई खामियां है। इसके कारण मरीज के शरीर पर विपरित असर पड़ रहा है। ऐसे 20 सरकारी और निजी अस्पतालों को चेतावनी नोटिस जारी कर दिए हैं। 30 दिन के भीतर सुधार करने के निर्देश दिए है। फिर भी गाइडलाइन का पालन नहीं हुआ तो सील कर देंगे।
मरीज ही नहीं रेडियोग्राफर की जान को भी खतरा
मप्र रेडियोग्राफर एसोसिएशन के एसके प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि ज्यादातर निजी अस्पतालों में प्रशिक्षित स्टॉफ नहीं है। कई बार वार्डबाय को ही जांच करनी पड़ती है। जिन रेडियोग्राफरों के पास डिग्री है उन्हें शिक्षण के दौरान ठीक से प्रैक्टिस नहीं दी गई।
निजी अस्पतालों में ऐसा चलन अधिक है। कई बार तो जानकारी के अभाव में बिना प्राथमिक जांच कराए कुछ डॉक्टर सीधे मरीजों का एक्सरे, सीटी स्कैन करवा देते हैं, जिनमें 70 फीसदी एक्सरे नार्मल निकलते है जबरन एक्सरे कराने से शरीर पर विपरित असर पड़ता है। जो रेडियोग्राफर प्रशिक्षित है उन पर सरकार ध्यान नहीं दे रही है। स्थिति यह है कि दूसरे प्रदेशों में विकिरण भत्ता 800 से लेकर 2000 रुपए तक मिलता है जबकि मप्र में 1988 से रेडियोग्राफरों को महीने में सिर्फ 50 रुपए मिल रहा है। सरकारी अस्पतालों में सुरक्षा इंतजामों की कमी के कारण 20 रेडियोग्राफरों की मौत हो चुकी है।
झूठे आश्वासन पर अच्छा काम नहीं कर सकते
जेपी अस्पताल के पूर्व सिविल सर्जन डॉ. एसके चौधरी ने कहा अभी भी अस्पतालों में संसाधनों की कमी है। जब भी कोई मंत्री निरीक्षण करने आते हैं वे कमी को पूरा करने आश्वासन देकर चले जाते है जो पूरे नहीं होते। स्टॉफ कमियों को ढ़ोते रहता है। ऐसे में बेहतर काम नहीं कर सकते।