भोपाल। मप्र में पुलिस की काली कमाई का एक बड़ा जरिया यह भी रहा है। पुलिस किसी भी मामले में खात्मा रिपोर्ट प्रस्तुत कर देती है। फरियादी को पता ही नहीं चलता कि उसकी एफआईआर पर एफआर लग गई। वो चाहे तो भी आपत्ति नहीं उठा पाता, क्योंकि उसे इससे संबंधित प्रावधान ही नहीं मालूम। कई बार फरियाद जिस वकील से मदद मांगने जाता है, वो वकील भी पुलिस अफसरों से सांठगांठ कर लेता है। कुल मिलाकर खात्मा कारोबार बड़े पुलिस अफसरों की मोटी कमाई का जरिया बना हुआ था लेकिन अब ऐसा नहीं हो पाएगा।
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने अधीनस्थ अदालतों को आदेश दिया है कि फरियादी का पक्ष सुने बिना पुलिस द्वारा प्रस्तुत खात्मा रिपोर्ट को मान्य न करें। यह आदेश एक याचिका के संदर्भ में दिया गया। मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता गाडरवारा निवासी चंदा बाई की ओर से अधिवक्ता सौरभभूषण श्रीवास्तव ने पक्ष रखा।
उन्होंने दलील दी कि 2011 में चंदा बाई के साथ असामाजिक तत्वों ने मारपीट और जातिसूचक गाली-गलौज किया, जिसकी शिकायत थाने में की गई। पुलिस ने केस रजिस्टर्ड किया लेकिन बाद में दूसरे पक्ष के दबाव में खात्मा रिपोर्ट पेश कर दी। इससे पूर्व शिकायतकर्ता को सुनने की जेहमत नहीं उठाई गई। यही नहीं जब मामला अदालत पहुंचा तो अदालत ने भी फरियादी को सुने बगैर ही खात्मे पर मोहर लगा दी। इससे व्यथित होकर हाईकोर्ट की शरण ली गई।