
गौरतलब है की विश्वविद्यालय ने पिछले कई सालों से लॉ के पाठ्यक्रमों को संचालित करने के लिए बीसीआई से मान्यता नही ली इसके बावजूद लगातार छात्रों को इन पाठ्यक्रमों में एडमिशन देते रहे। यह जानकारी विधि विभाग के ही आठवें सेमेस्टर के छात्र सौरभ देव पाण्डेय ने आरटीआई के माध्यम से जब विश्वविद्यालय प्रशासन से जाननी चाही तो उन्हें गलत जानकारी देकर भ्रमित किया गया।
तब सौरभ द्वारा बार कौंसिल आफ इंडिया में संपर्क कर यह जानकारी एकत्रित की गयी। ऐसा ही मामला कुछ दिनों पहले विश्वविद्यलय के ही शिक्षा विभाग में संचालित होने वाले विभिन्न पाठयक्रमों के सम्बन्ध में था जिसमे अब छात्र हाई कोर्ट की शरण में हैं। सवाल यह उठता है की आखिर विश्वविद्यालय प्रशासन क्यों विश्वविद्यालय की अस्मिता के साथ कर रहा है खिलवाड़।