
वैसे पूरी दुनिया में इस साल 42 लाख लोगों की अकाल मृत्यु इस कारण से हुई थी, जिसमें आधी से ज्यादा 22 लाख-मौतें सिर्फ भारत और चीन में हुई थीं। रिपोर्ट में बताया गया है कि चीन के शहरी वातावरण में पीएम 2.5 कणों की मौजूदगी घटाने के लिए ठोस प्रयास शुरू हो चुके हैं, लेकिन भारत में कई मंत्री और अधिकारी आधिकारिक तौर पर बयान जारी करते रहते हैं कि वायु प्रदूषण यहां कोई बड़ी समस्या नहीं है।
ऐसे में भारत जल्द ही वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों के मामले में चीन को काफी पीछे छोड़ देगा और इस मामले में दुनिया का कोई भी देश उसके आस-पास भी नजर नहीं आएगा। प्रदूषण को लेकर हमारी सरकारों का आम रवैया यही रहा है कि इसे विकसित देश बनाम विकासशील देश के भाषणबाजी वाले मुद्दे की तरह ही लेती है। गभीर और ठोस प्रयास इस दिशा में नकाफी दिखाई देते है।
वर्तमान केंद्र सरकार ने जब स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत की, तो भी इसका दायरा ठोस कचरे की सफाई तक ही सीमित रखा। इस कचरे के निपटारे की कोई समुचित योजना भी अनहि सुझाई गई। जिससे यह अभियान भी व्यवहार में दिखावा ही साबित हुआ, बड़े शहरों के इर्दगिर्द कचरे के पहाड़ खड़े हो रहे हैं। धूल औए धुआं उगलते कारखाने साफ़ दिखते हैं । जल प्रदूषण का मामला ‘नमामि गंगे’ जैसे फोकट फंड के अर्ध-धार्मिक अभियान तक सीमित है, जबकि वायु प्रदूषण पर तो अभी तक कुछ भी करना जरूरी नहीं समझा गया है। पता नहीं और क्या भोगना होगा विकास के नाम पर।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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