प्रमोशन में आरक्षण: सुप्रीम कोर्ट में बहस शुरू, 21 से लगातार

भोपाल। आज दिनांक 14.02.2017 को सरकारी कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण प्रकरण में माननीय सुप्रीम कोर्ट में सुनवायी प्रारंभ हुई। सुनवायी शुरू होते ही शासन की ओर से प्रकरण को बढ़ाये जाने हेतु पुनः निवेदन किया गया एवं बहस हेतु और समय मांगा गया। प्रतिवादी के अधिवक्ताओं के विरोध के फलस्वरूप किसी प्रकार की रियायत माननीय न्यायालय द्वारा नहीं दी गयी एवं तब शासन की ओर से अधिवक्ता श्री व्ही. शेखर द्वारा अपना पक्ष रखना प्रारंभ किया गया। 

ज्ञातव्य है कि कल दिनांक 13.02.2017 को भी इसी प्रकरण में शासन के अधिवक्ताओं की ओर से प्रकरण की तारीख बढ़ाये जाने का निवेदन माननीय न्यायालय से किया गया था, जिसे माननीय न्यायालय द्वारा ठुकरा दिया गया था।

अब तक 10 दिग्गज वकील बदल चुकी है सरकार 
सपाक्स की ओर से जारी प्रेस रिलीज के अनुसार प्रकरण में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा लगभग 1 घण्टे सुनवाई के पश्चात प्रकरण की निरंतर सुनवायी हेतु आगामी तारीख 21.02.2017 निश्चित की गयी है, आज प्रकरण में शासन की ओर से बहस के लिये वरिष्ठ वकील श्री कपिल सिब्बल भी उपस्थित हुये। उक्त प्रकरण में अभी तक लगभग 10 वरिष्ठ वकीलों की सेवायें शासन द्वारा ली जा चुकी है। यह उल्लेखनीय है कि प्रकरण में लगभग 10 बार सुनवायी हेतु तारीख नियत हो चुकी है एवं हर बार शासन की ओर से सार्थक बहस की शुरूआत न करते हुये हमेशा और समय की मांग की जाती रही है जिससे ऐसा स्पष्ट होता है कि शासन के पास माननीय न्यायालय के समक्ष रखने को न तो कोई तर्क है और न ही कोई विश्वसनीय आंकड़े।

कर्नाटक सरकार केस हार चुकी है 
प्रेस रिलीज के अनुसार दिनांक 09.02.2017 को भी माननीय सर्वोच्च न्यायालय के ताजा निर्णय में कर्नाटक राज्य के पदोन्नति नियमों को संविधान सम्मत न पाते हुये परिणामी वरिष्ठता दिये जाने को गलत ठहराया था एवं सभी पदोन्नतियों की पुनर्समीक्षा करने के आदेश पारित किये थे। मध्यप्रदेश शासन के पदोन्नति नियम भी संविधान सम्मत न पाये जाने के कारण माननीय उच्च न्यायालय जबलपुर द्वारा अपात्र घोषित किये गये थे। 

आधा दर्जन राज्यों में प्रमोशन में आरक्षण खत्म
यह उल्लेखनीय है कि उत्तरप्रदेश, राजस्थान, बिहार, हिमांचल प्रदेश, हरियाणा, कर्नाटक राज्यों के पदोन्नति नियम असंवैधानिक होने की पुष्टि माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अब तक की जा चुकी है। चूंकि मध्यप्रदेश पदोन्नति नियम भी इन्हीं आधारों पर माननीय उच्च न्यायालय द्वारा अपास्त किये गये थे। अतः इन नियमों के असंवैधानिक होने की माननीय सर्वोच्च न्यायालय की पुष्टि होना लगभग निश्चित है।

सपाक्स की सरकार से अपील 
प्रेस रिलीज में कहा गया है कि ऐसा परिलक्षित होता है कि किसी बड़ी मजबूरी के कारण शासन द्वारा अनावश्यक विलंब की कोशिश कर बहुसंख्यक वर्ग के अधिकारियों/कर्मचारियों के भविष्य से खिलवाड़ किया जा रहा है। सामान्य पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक वर्ग से शासकीय कर्मियों के हित में सपाक्स संस्था मध्यप्रदेश शासन से निवेदन करती है कि यह बेहतर होगा कि शासन माननीय सर्वोच्च न्यायालय से अपनी अपील वापिस लेकर माननीय उच्च न्यायालय के निर्णय को मानते हुये इसे तत्काल प्रभावशील करे। ताकि अनावश्यक रूप से किये जा रहे विलंब के नुकसान से बचा जा सके, तथा प्रकरण पर जनता की गाढ़ी कमाई के धन का अपव्यय रूक सके। शासन द्वारा ऐसा किये जाने पर प्रदेश भर में यह संदेश जावेगा कि सरकार संविधान का सम्मान करती है एवं सभी वर्गो के साथ वास्तव में समानता का दृष्टिकोण रखती है।

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