स्कूल शिक्षा से संबंधित 2 आदेशों ने कलेक्टर्स समेत तमाम तंत्र को कंफ्यूज कर दिया

भोपाल। मप्र में स्कूल शिक्षा से संबंधित 2 अलग अलग आदेशों ने कलेक्टर्स समेत पूरे तंत्र को ही कंफ्यूज कर दिया है। एक आदेश में कलेक्टर को पॉवरफुल बनाया गया है तो दूसरे में उसके अधिकार कट कर दिए गए। सरकारी और प्राइवेट स्कूलों का नियंत्रण और मान्यता के काम कौन देखेगा, कौन नहीं कुछ क्लीयर ही नहीं हो रहा है। 

यह है मामला: 
21 जून 2016 को निकाले गए आदेश के अनुसार लोक शिक्षण संचालनालय ने 51 जिलों के निरीक्षण के लिए 33 ओआईसी नियुक्त किए। वे सरकारी स्कूलों की दुर्दशा जिला कलेक्टरों और आयुक्त लोक शिक्षण को बताएंगे। दूसरा आदेश 8 नवंबर 2016 को जारी किया गया, इसमें प्राइवेट स्कूलों की मान्यता की जिम्मेदारी संयुक्त संचालकों को दे दी गई। जो आयुक्त लोक शिक्षण और आयुक्त राज्य शिक्षा केंद्र को जानकारी देंगे। 

अब जब संभागीय संयुक्त संचालक संभाग स्तर पर सही मॉनिटरिंग कर रहे थे, तो संचालनालय को प्रभारी ओआईसी की नियुक्ति की आवश्यकता क्यों पड़ी? इन ओआईसी को संभागीय संयुक्त संचालकों को रिपोर्ट देने का आदेश क्यों जारी नहीं किया गया? इससे प्रतीत हो रहा है कि सरकारी स्कूलों की दुर्दशा कलेक्टर संभालेंगे। जबकि प्राइवेट स्कूलों की दुर्दशा पर संयुक्त संचालक पर्दा डालेंगे। 

इस मामले की शिकायत जनशिक्षा अधिकार संरक्षण समिति के अध्यक्ष रमाकांत पांडेय ने मुख्यमंत्री, स्कूल शिक्षा मंत्री, मुख्य सचिव तथा सचिव स्कूल शिक्षा विभाग को कर दी है। उन्होंने बताया कि इस बात का पता ही नहीं चला कि विभाग ने कब शासकीय और अशासकीय स्कूलों की दुर्दशा सुधारने के लिए कार्य विभाजन कर दिया। 

तो क्यों नहीं दिए सामंजस्य के निर्देश
राज्य शिक्षा सेवा का गठन के संबंध में प्रकाशित राजपत्र 25 जुलाई 2013 के अनुसार संभागीय संयुक्त संचालकों को जिलों में संचालित विभिन्न गतिविधियों की सतत मॉनिटरिंग व निरीक्षण करने व उनकी रिपोर्ट आयुक्त लोक शिक्षण तथा आयुक्त राज्य शिक्षा केंद्र को सौंपने के निर्देश हैं। यदि जिला कलेक्टर प्राइवेट स्कूलों की मान्यता में गड़बड़ी कर रहे थे, तो संचालनालय स्तर से जारी आदेश तथा नियुक्त प्रभारी अधिकारियों को कलेक्टर को रिपोर्ट सौंपने के निर्देश जारी करने तथा कलेक्टरों से सामंजस्य बनाकर कार्य करने के निर्देश जारी करने की जरूरत क्यों पड़ी? 

यह है असमंजस की स्थिति... 
जिला कलेक्टरों से मान्यता के अधिकार वापस लेकर संभागीय कार्यालयों के संयुक्त संचालकों को देना इस बात को उजागर करता है कि लोक शिक्षण संचालनालय स्तर से जारी दोनों पत्रों ने विभागीय कार्य विभाजन कर शासकीय स्कूलों की दुर्दशा को देखने कलेक्टरों को अधिकृत कर दिया है। जबकि दूसरे पत्र में जिला कलेक्टरों से मान्यता के अधिकार छीन कर संभाग स्तर पर पदस्थ संभागीय संयुक्त संचालकों को दे दिए गए हैं और संभागीय संयुक्त संचालकों से दौरों व मॉनीटरिंग के अधिकार छीन लिए गए हैं। 

सवाल उठता है कि संभागीय संयुक्त संचालकों द्वारा दौरों व मॉनिटरिंग पर प्रतिमाह लाखों रुपए सरकार के खर्च किए जाते हैं। संचालनालय स्तर से संचालनालय में पदस्थ ओआईसी अधिकारियों द्वारा भी जिलों का प्रभार देकर यात्रा में व्यय किया जाएगा। इससे भी सरकार को लाखों रुपए का चूना सिर्फ यात्रा और निरीक्षण में ही बर्बाद होगा। जबकि पत्र में दिखाया यह जा रहा है, इससे शिक्षा व्यवस्था में सुधार हो रहा है। 

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