
सूर्योदय से पूर्व कैलाश पर्वत पर शिवलिंग सफेद, सूर्योदय होने पर पीला, दोपहर में लाल हो जाता है और फिर क्रमश: पीला, सफेद होते हुए संध्या काल में काला हो जाता है। किन्नौर वासी इस शिवलिंग के रंग बदलने को किसी दैविक शक्ति का चमत्कार मानते हैं। कुछ बुद्धिजीवियों का मत है कि सूर्य की किरणों के विभिन्न कोणों में पडऩे के साथ ही यह चट्टान रंग बदलती नजर आती है। इस स्थान को भगवान शिव शीतकालीन प्रवास स्थल माना जाता है। किन्नर कैलाश सदियों से हिंदू व बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए आस्था का केंद्र है। इस यात्रा के लिए देश भर से लाखों भक्त किन्नर कैलाश के दर्शन के लिए आते हैं।
खतरनाक रास्तों से पड़ता है जाना...
हर वर्ष सैकड़ों शिव भक्त जुलाई व अगस्त में जंगल व खतरनाक दुर्गम मार्ग से हो कर किन्नर कैलाश पहुंचते हैं। किन्नर कैलाश की यात्रा शुरू करने के लिए भक्तों को जिला मुख्यालय से करीब सात किलोमीटर दूर राष्ट्रीय राजमार्ग-5 स्थित पोवारी से सतलुज नदी पार कर तंगलिंग गांव से हो कर जाना पड़ता है। गणेश पार्क से करीब पांच सौ मीटर की दूरी पर पार्वती कुंड है।
इस कुंड के बारे में मान्यता है कि इसमें श्रद्धा से सिक्का डाल दिया जाए तो मुराद पूरी होती है। भक्त इस कुंड में पवित्र स्नान करने के बाद करीब 24 घंटे की कठिन राह पार कर किन्नर कैलाश स्थित शिवलिंग के दर्शन करने पहुंचते हैं। वापस आते समय भक्त अपने साथ ब्रह्मा कमल और औषधीय फूल प्रसाद के रूप में लाते हैं।