
सपाक्स का कहना है कि प्रकरण में अभी तक 8-बार हुई कोर्ट की पेशी में जो भी वकील उपस्थित हुए उन्होंने हर बार प्रकरण की सुनवाई बढ़ाने की ही जिरह की न कि प्रकरण में निर्णय के लिये बहस शुरू करने की। आश्चर्यजनक है कि सरकार निर्णय नहीं चाहती बल्कि निर्णय को टालने की पहल में जनता की गाड़ी कमाई के लाखों रुपये लुटा रही है।
प्रश्न यह भी खड़ा होता है कि क्या सरकार को शासकीय वकीलों की क्षमताओं पर विश्वास नहीं है? यदि ऐसा है तो अन्य प्रकरणों में जिनमें सरकार हारी है, किसकी जिम्मेदारी है? उच्च न्यायालय में इस प्रकरण में स्वयं पुरुशेँद्र कौरव, अतिरिक्त महाढिवक्ता सरकार की ओर से लड़े थे|
हजारों कर्मचारी इस प्रकरण के लम्बित रहने से बगैर पदोन्नति सेवानिवृत हो चुके हैं. फ़िर भी सरकार प्रकरण में निर्णय की पहल न करते हुए निरंतर इसे टालने की पहल ही कर रही है. स्थिति यहाँ तक आ चुकी है कि महत्वपूर्ण पदों पर भी सरकार संविदा पर सेवानिवृत अधिकारियों की सेवायें लेने को मजबूर है. ऐसे में प्रशासनिक हालातों की कल्पना स्वतः की जा सकती है|