नई दिल्ली। ससिकला को सजा सुनाए जाने के बाद एआईडीएमके में नेतृत्व का संकट खड़ा हो गया है।ससिकला अपनी सजा के खिलाफ अपील कर सकतीं हैं परंतु अब 10 साल तक चुनाव नहीं लड़ सकतीं। एआईडीएमके की परंपरा है कि सत्ता और संगठन की कमान एक ही व्यक्ति के हाथ में होती है। पन्नीरसेल्वम को इसीलिए हटाया जा रहा था क्योंकि तमिलनाडु में सत्ता और संगठन की कमान अलग अलग हाथों में चली गई थी। अब जबकि हालात ससिकला के साथ नहीं हैं, तो सवाल यह उठता है कि वो कौन होगा जो सत्ता और संगठन की कमान एक साथ संभालेगा। क्या ससिकला के बफादार विधायक पन्नीरसेल्वम को अपना नेता मान लेंगे।
जयललिलता की मौत के बाद यह प्रश्न खड़ा हुआ था कि एआईडीएमके पार्टी अब कौन चलाएगा? तब लोगों के जेहन में एक नाम स्पष्ट रुप से उभर कर सामने आया था। वो नाम ससिकला का था। ससिकला, जयललिता की सबसे करीबी सहेली है। जयललिता की मौत के बाद ससिकला ने सक्रिय रुप से पार्टी को संभाला। जयललिता के निधन के बाद पार्टी की आपात बैठक बुलाई गई थी, जहां ससिकला को पार्टी की कमान दी गई। पन्नीरसेल्वम पार्टी के मुख्यमंत्री बनाए गए।
पार्टी में सत्ता के दो केंद्र हो गए। एक ससिकला और दूसरा पनीर सेल्वम। बाद में पन्नीरसेल्वम को हटाने की कोशिशों के बीच वे बागी हो गए। इस बीच पन्नीसेल्वम ने अपने को पार्टी में एक नेता के तौर पर स्थापित कर लिया। विधायक जरुर ससिकला के पक्ष में थे लेकिन पार्टी के कई बड़े नेता और सांसदों का समर्थन पन्नीसेल्वम को था।
कोर्ट के इस फैसले के बाद यह सवाल बहुत बड़ा हो गया कि पार्टी का सर्वेसर्वा कौन होगा? अब यहां देखना होगा कि जो विधायक अभी तक ससिकला के साथ खड़े थे अब वह पन्नीरसेल्वम के साथ खड़े होते हैं या ससिकला खेमे का कोई नेता पन्नीरसेल्वम के मुकाबले खड़ा किया जाता है।
तमिलनाडु की राजनीति में आने वाले दो दिन इसलिए भी महत्वपूर्ण होंगे कि राज्यपाल अब कौन सा रुख अपनाते हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि राज्यपाल पन्नीरसेल्वम को सदन में अपना बहुमत साबित करने के लिए बुलाते हैं या नहीं?