भगवान सूर्यदेव कुम्भ राशि में प्रवेश कर चुके हैं। कुम्भ राशि में प्रवेश करते ही सूर्य देव शनि महाराज की दृष्टि और ग्रहण योग के घेरे में आ गये है। पूरे माह भर सूर्य राहु की दृष्टि और केतु के साथ रहेंगे। सूर्य राज्य, पिता, शरीर में हड्डी का कारक होता है। राज़योग मान सम्मान सूर्य की कृपा से ही मिलता है। जब यह ग्रह राहु केतु के चंगुल में आता है तो जातक को हृदय रोग, अस्थि भंग, पिता को कष्ट तथा राज्यद्रोह ,राज्य दंड का भागी बनना पड़ता है। प्रशासक को भारी कष्टों का सामना करना पड़ता है। चोर बदमाश, षडयंत्र करने वालों को सफलता मिलती है। अचानक प्राक्रतिक विपदा आती है।
ग्रहण योग के सम्भावित परिणाम
विश्वस्तर पर दक्षिण पश्चिम के भू भाग मॆ प्राक्रतिक विपदा व सत्तारूढ़ दल कॊ कष्ट व राज्य भंग का योग। तमिलनाडु के लिये कष्टकारी समय। अमेरिका को भी भारी उठापटक का सामना करना पड़ेगा।
राज्यपाल ,राष्ट्पति ,मुख्यमन्त्री तथा उच्च पदों पर बैठे व्यक्ति संकट में रहेंगे।
नेत्रों की सुरक्षा का विशेष ध्यान रखें। हृदय रोग के मरीज खानपान मॆ संयम रखें। यात्रा आदि स्थगित करें।
सभी राशियों के लिये परिणाम
*मेष*-ग्रहण योग लाभ भाव मॆ बन रहा है आर्थिक क्षेत्र मॆ सामान्य परेशानी रहेगी।संतान पक्ष का ध्यान रखें।
*वृषभ*-नौकरी मॆ वरिष्ठ अधिकारी वर्ग से बनाकर रखें। सावधान रहें।
*मिथुन*-यात्रा मॆ सावधानी बरतें।खिलाड़ी तथा यात्रा से जुड़े व्यवसायी विशेष सावधान रहें।
*कर्क*-नेत्रों की सुरक्षा पर ध्यान दें।आर्थिक लेन दें निवेश के लिये समय ठीक नही।
*सिंह*-परिवार ,व्यापार मॆ संकटों कॊ शांति पूर्ण ढंग से सुलझाने का प्रयास करें ।
*कन्या*-शत्रु परास्त होंगे।रोग ,ऋण समस्याओं का निदान मिलेगा।
*तुला*-शिक्षा ,संतान ,उदर विकार का योग।मित्रों व प्रेम सम्बन्धों मॆ टकराव से बचें।
*वृश्चिक*-सामाजिक्र कार्यों मॆ दिक्कतों का योग।वाहन ,भवन से जुड़ी दिक्कतों का योग।
*धनु*-पराक्रम वृध्दि के योग।मेहनत सफल होगी।
*मकर*-आर्थिक संकटों का योग।मान हानि से बँचे।
*कुम्भ*-रोज़गार,व्यापार मॆ दिक्कतों का योग।साझीदार से बनाकर रखें।
*मीन*-राज्य दंड का योग।व्यर्थ मॆ शासकीय उलझन बचें।
*उपाय*
*भगवान भैरव का पूजन करें। कुत्तों कॊ रोटी बिस्किट, दूध आदि दें।
*सफाई कर्मी को पैसा भोजन या किसी भी तरह का दान करें।
*खानपान मॆ संयम रखें, अंधे, लंगडे लोगों कॊ भोजन व जो मदद कर सकते है करें।
*पंडित चंद्रशेखर नेमा"हिमांशु"*
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