
पिछले तीन साल से दौलतपुर, बिहार का मनोज मंडल युवकों को गुमराह कर उनके खाते से पैसा मंगाता था। इसका राजफाश अप्रैल 2013 में हो गया था। हेराफेरी के इस मामले में मनोज जेल चला गया। कुछ दिनों बाद जब वह जेल से छूटा तो अपने नेटवर्क को और भी बड़ा कर दिया।
25-30 युवक उसके साथ इस धंधे में लगे थे। मनोज ने झाझा के बुढ़ीखार और जमालपुर के युवकों की मदद से सैकड़ों लोगों के एटीएम कार्ड को अपने कब्जे में लिया था। उन खाताधारकों के खाते पर कालाधन मंगवाकर उसे सफेद करने का बड़ा धंधा कर लिया। इस धंधे में उसे करोड़ों की कमाई होने लगी। इस पैसे को उसने जमीन, मकान और दुकान में लगाने लगा।
सूत्र बताते हैं कि जमुई-लखीसराय सड़क के किनारे एक जमीन की जब बोली लगी तो मनोज 13 करोड़ रुपये में उसे खरीदने को तैयार हो गया। हालांकि जमीन की बिक्री नहीं हो सकी। दौलतपुर के लोगों की मानें तो कुछ ही वर्षों में मनोज ने दस एकड़ जमीन खरीद ली।
मकान बनाने के साथ-साथ मनियड्डा में जमीन खरीदकर दुकान बना ली, जिसमें सीमेंट और छड़ का बड़ा व्यवसाय करने लगा। दिन दूना-रात चौगुनी तरक्की को देख आस-पड़ोस वाले भी भौंचक थे, परंतु मनोज के कारनामों से अनभिज्ञ थे।
12 फरवरी की रात जब मध्यप्रदेश एटीएस जमुई पुलिस की सहयोग से मनोज की गिरफ्तारी की तो मामला सामान्य लगा। एटीएस की पूछताछ में जब मनोज के तार आइएसआइ से जुड़ने लगे तो तब यहां के लोगों को उसका असली रूप समझ में आया।