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बैंक मान रहा है कि ये दरें इतनी ज्यादा नहीं हैं, जिनमें अभी बदलाव की जरूरत हो। हालांकि विमुद्रीकरण के फैसले से विकास दर पर जो असर पड़ा है, उसे रिजर्व बैंक ने स्वीकार किया है. उसके अनुसार मौजूदा वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद की विकास दर 6.9 फीसद रहेगी जबकि वित्त वर्ष 2018 में इसकी दर 7.4 फीसद हो सकती है।
अगर विकास दर संतोषजनक नहीं हो तो फिर उसे धक्का देने के लिए सामान्यत: ब्याज दर घटाई जाती है ताकि करोबारी लोग सस्ते कर्ज से उत्पादन और कारोबार करें तथा उभपोक्ता उसे खरीद सकें। इससे विकास को गति मिलती है। ऐसा लगता है कि रिजर्व बैंक ने 2016 के अंत में प्रधानमंत्री द्वारा आवास कर्ज में जिस छूट की घोषणा की गई तथा वर्तमान बजट में उत्पादन और कारोबार के लिए जो रियायतें दी गई हैं, उनका परिणाम देखना चाहता है।
हाल में बैंकों ने स्वयं ही ब्याज दरों में कटौतियां की हैं। तो कर्ज और सस्ता होने के लिए हमें अगली या फिर उसके बाद की मौद्रिक समीक्षा नीति का इंतजार करना होगा। यह मानने में भी हर्ज नहीं है कि मौद्रिक नीति समिति ने नोटबंदी के मुद्रास्फीति पर पड़ने वाले अस्थायी प्रभाव को ध्यान में रखते हुए अपना रुख तटस्थ रखा है।
नये नोटों की आपूर्ति बढ़ने के साथ-साथ बैंकों के पास जमा नकदी का स्तर कम होता जाएगा. हालांकि हमारे लिए इस समीक्षा नीति में राहत का पहलू यह है कि केंद्रीय बैंक ने जनवरी से मार्च के दौरान खुदरा महंगाई दर 5 प्रतिशत के नीचे रहने की उम्मीद जताने के साथ इसे 4 फीसद पर लाने के लिए प्रतिबद्धता घोषित की है। इसके साथ नकदी सीमा को अगले दो चरणों में 13 मार्च से खत्म करने की घोषणा भी राहत देने वाली है. लोग उस दिन की प्रतीक्षा कर रहे हैं, जब वे अपने खाते से मनमानी रकम निकाल सकें।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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