
इसके बाद तातारपुर में ऐसे बच्चे के जन्म की खबर सुनकर उसे देखने के लिए नर्सिंग होम में भीड़ जुट गई। इससे उसकी मां शहनाई इतनी परेशान हुई कि बच्चे को लेकर दोना गांव चली गयी। डॉ. इमराना रहमान ने बताया कि 21 फरवरी को बच्चे का जन्म हुआ था।
उन्होंने बताया कि मेडिकल साइंस में इसे हर्लेक्विन इचथाइयोसिस कहते हैं। यह त्वचा की बीमारी है, जो किसी बच्चे को मां-बाप की जीन से मिलती है। गर्भ के दौरान ही बच्चे में एबीसी-12 जीन बढ़ने से ऐसा विकार होता है, लेकिन गर्भ की जांच में इसका कुछ पता नहीं चलता है।
डॉक्टर के मुताबिक एबीसी-12 जीन की वजह से त्वचा पर लिपिड नहीं पहुंच पाता है और त्वचा काफी सख्त व मोटी हो जाती है। इससे दरार पड़ने लगती है और बच्चे को मूवमेंट में भी दिक्कत आती है।
डॉ. रहमान के अनुसार, इस बीमारी के कारण मौत भी हो जाती है, क्योंकि त्वचा की वजह से शरीर के अंदर का तापमान कंट्रोल नहीं रहता है और डिहाइड्रेशन, ब्रेथलेसनेस, इंफेक्शन की संभावना तेजी से बढ़ती है और फिर बच्चे की मौत हो जाती है। अक्सर ऐसे बच्चे पांच से सात दिन ही जिंदा रहते हैं। ऐसे बच्चों को बचाने के लिए एनआईसीयू में मेडिकल सपोर्ट पर रखना होता है और यह उपचार काफी खर्चीला होता है।
विश्व भर में अब तक हर्लेक्विन इचथाइयोसिस बीमारी से ग्रस्त 175 बच्चों ने जन्म लिया है अाठ माह पूर्व लता मंगेशकरर हॉस्पिटल, नागपुर में इस तरह के बच्चे का जन्म हुआ था लेकिन उसकी मौत हो गई। पाकिस्तान और जर्मनी की एक-एक एेसी बच्ची पैदा हुई, वे जिंदा हैं। दोनों के स्वास्थ्य की नियमित जांच होती रहती है।