राकेश दुबे@प्रतिदिन। देश के मौसम का मिजाज़ इस बार कुछ ज्यादा ही बदला। जाते जाते सर्दी लौटी तो कहीं सर्दी का पारा जरूरत से ज्यादा बार उतरा चढ़ा। इस बदलते मिजाज़ पर चेन्नई के सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज ऐंड एडॉप्टेशन रिसर्च का कहना है कि यह जो गुलाबी ठंड है, यही सर्दियों की सामान्य स्थिति है। हालांकि इसका अर्थ यह नहीं है कि कड़ाके की ठंड अब नहीं पड़ा करेगी, बल्कि इसका अर्थ है कि कड़ाके की ठंड जब पड़ेगी, तो वह असामान्य मौसम होगा, सामान्य मौसम में अब सर्दियां गुलाबी ही रहेंगी। यह नतीजा देश के पर्यावरण पर ग्रीन हाउस गैसों के असर को मापने के लिए हुए शोध में निकला है।
शोध करने वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि देश का न्यूनतम तापमान तेजी से ऊपर की ओर जा रहा है, आने वाले समय में इसमें और भी ज्यादा तेजी आ सकती है। उनका अनुमान है कि अगले चार साल में न्यूनतम तापमान 0.9 डिग्री सेल्शियस तक बढ़ सकता है। और सन 2050 तक यह वृद्धि 2.3 डिग्री तक हो जाएगी, उसके भी अगले 30 साल में तापमान 3.6 डिग्री तक ऊपर चढ़ जाएगा।
वैज्ञानिकों ने न्यूनतम तापमान बढ़ने का जो कारण बताया है, वह काफी दिलचस्प है। उनका कहना है कि ग्रीन हाउस गैसें रात को ज्यादा सक्रिय होती हैं। इस समय वे इंफ्रारेड किरणों को ज्यादा सोखती हैं, जिससे तापमान बढ़ जाता है। मौसम कोई भी हो, हमारा वातावरण रात के समय ही न्यूनतम तापमान से दो-चार होता है। वैज्ञानिकों का यह आकलन भी है कि जितनी तेजी से न्यूनतम तापमान बढ़ेगा, उतनी तेजी से अधिकतम तापमान में वृद्धि नहीं होगी। जाहिर है, यह भी ग्रीन हाउस गैसों की रात्रिकालीन अतिसक्रियता को ही दिखाता है, क्योंकि अधिकतम तापमान दिन के समय ही रिकॉर्ड होता है। यानी इसका कुल जमा निष्कर्ष यह है कि हम काफी तेजी से ग्लोबल वार्मिंग की ओर बढ़ रहे हैं।
धरती का गरम होते जाना एक ऐसा विषय है, जिसे लेकर वैज्ञानिक समुदाय में ही कई तरह के मत हैं। कुछ वैज्ञानिक मानते हैं कि जो ग्लोबल वार्मिंग हमारे सामने है, वह हमारी सभ्यता के क्रिया-कलापों का ही नतीजा है। दूसरी तरफ, कुछ वैज्ञानिक मानते हैं कि धरती के गरम और ठंडे होने का एक चक्र होता है, जो हमारी सभ्यता के आने के पहले से ही चल रहा है और आगे भी चलता रहेगा। एक छोटा-सा समुदाय ऐसे वैज्ञानिकों का भी है, जो यह मानता है कि धरती गरम होने से पहले एक बार हिमयुग की चपेट में भी आ सकती है।
हालांकि इन दिनों ज्यादा संख्या में वैज्ञानिक यही मान रहे हैं कि हमारी धरती गरम होने की ओर बढ़ रही है। अगर धरती सचमुच गरम होने की ओर बढ़ रही है, तो एक देश के रूप में, एक सभ्यता के रूप में और एक संस्कृति के रूप में हमारी चुनौतियां काफी तेजी से बढ़ रही हैं। धरती के गरम होने का अर्थ होगा, फसल चक्र से लेकर अर्थव्यवस्था तक का तेजी से बदलना। सबसे बड़ी चुनौती देश को इतना समर्थ बनाने की है कि वह इन बदलावों से आसानी से निपट सके। इस दिशा में कोई काम नहीं हो रहा है, सब को सोचना होगा और जल्दी कुछ करना होगा।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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