जब तक जीवन मॆ सुख सुविधा है आदमी किसी प्रकार का कोई चिंतन नही करता। खाना पीना तथा मस्त नींद लेना प्राणी मात्र का स्वभाव है लेकिन जब आदमी आर्थिक अभाव, बीमारी, कोर्ट कचहरी के चक्कर मॆ पड़ता है तब उसे भगवान ग्रह योग, भाग्य, दुर्भाग्य समझ आता है।
दुर्भाग्य से जुड़े ग्रह
राहु ,केतु और शनि ये तीन ग्रह ऐसे है यदि ये पत्रिका में बिगड़ जाये तो आदमी का जीवन संकटपूर्ण हो जाता है।
शनि
शनि महाराज को काल पुरुष का दुख माना गया है आपके जीवन में यदि दुख ज्यादा है तो ये शनिदेव के कारण ही है और ये आपके पुराने कर्मों का फल है। शनि महाराज काल पुरुष के दंडाधिकारी भी है। किसी भी पत्रिका मॆ लग्न स्थान में बैठा शनि परिवार कर्मक्षेत्र में दिक्कतों को देता है। शारीरिक पीडा भी इसी शनि के कारण होती है। चतुर्थ(चौथा) स्थान में बैठा शनि कर्मक्षेत्र तथा शारीरिक तकलीफ को बढ़ाता है साथ ही जन्मस्थान से दूर रखता है।
परम कष्टकारी पंचम शनि
पत्रिका के पाँचवे भाव में बैठा शनि परम अनिष्टकारी होता है। इस भाव में बैठा शनि तीसरी दृष्टि से परिवार व्यापार तथा अन्य दोनो दृष्टि से आर्थिक स्थिति कॊ बिगाड़ता है। ऐसे में आदमी का जीवन नरक हो जाता है। ऐसा ही पत्रिका में आठवें स्थान में बैठा शनि भी करता है।
शनि शांति के उपाय
वैसे तो शास्त्रों मॆ शनि शांति के कई उपाय है लेकिन जो सबसे ज्यादा असरकारक व त्वरित लाभदायक है उन्हे आम जनता के हितार्थ देता हूँ। यदि आपकी पत्री नही है तथा जीवन कष्टपूर्ण है तो प्रतिदिन पीपल की परिक्रमा करनी चाहिये। शाम को दीपक लगाना चाहिये।
दशरथकृत शनि स्त्रोत का पाठ करना चाहिये।
दरिद्रता नाश व कड़े दुर्भाग्य से छुटकारे के लिये रामायणजी का पाठ इस कलयुग में अमृत के समान औषधि है। हनुमानजी का आशीर्वाद है जहाँ रामायण जी का पाठ होगा वहाँ वे स्वयं उपस्थित रहेंगे और जहाँ वे रहेंगे वहां शनि महाराज का दुष्प्रभाव निश्चित रूप से ख़त्म होगा।
पंडित चंद्रशेखर नेमा"हिमांशु
9893280184