भोपाल। मप्र के एडीजी जेल जीआर मीणा ने जेलरों को आदेशित किया है कि यदि कोई भी कैदी जेल से भागने या प्रहरियों पर हमला करने की कोशिश करे तो बिना हिचक उसे गोली मार दें। आदेश जेल मुख्यालय से सभी जेल अधीक्षकों के लिए जारी हो गए हैं। बताया जा रहा है कि मुरैना जेल ब्रेक के बाद कैदियों को काबू करने के लिए यह आदेश जारी किया गया है। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने इस आदेश पर आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि इस तरह के आदेश से जेलरों को मनमानी की छूट मिलेगी और विरोध करने वाले कैदी को खिड़की तोड़कर गोली मारने की संभावनाएं बनी रहेंगी। जेलों में कैदियों के साथ अवैध वसूली एवं मारपीट के मामले लगातार प्रकाश में आते रहते हैं।
मुरैना जेल से कल दो बंदी फरार हो गए थे। अनिल राठौर और ओम प्रकाश जाट की ड्यूटी जेल अधीक्षक के पुराने कार्यालय की साफ सफाई के लिए लगाई गई थी। दोनों जब साफ-सफाई करने जाते थे, यहां की दीवार में हर दिन कुछ-कुछ तोड़ लेते थे। अचानक दीवार में पूरी तरह से सेंध लगाने में कामयाब हो गए और वहां से छत के रास्ते भागने में सफल रहे।
इस घटना के बाद रात में ही जेल मुख्यालय ने सभी जेल अधीक्षकों को जेल ब्रेक करते पाए जाने पर बंदी को गोली मारने के आदेश दिए हैं। आदेश में यह भी साफ किया है कि दीवार में सेंध लगाते हुए, खिड़की, दरवाजा या जाली तोड़ते हुए, या भागने के लिए प्रहरी या अन्य अफसर पर हमला करे तो उसे गोली मार दी जाए।
उधर मुरैना जेल पहुंचे एडीजी जीआर मीणा को कई खामियां दिखाई दी है। जेल ब्रेक की घटना के बाद उन्होंने तत्काल चार लोगों को निलंबित कर दिया था।
कौन हैं आईपीएस गाजीराम मीणा
मप्र पुलिस मुख्यालय में एडीशनल डायरेक्टर जनरल के पद पर पदस्थ 52 साल के डॉ. गाजीराम मीणा ने 1990 में भारतीय पुलिस सेवा में करियर शुरू किया और 2012 तक 22 साल में 65 से ज्यादा डकैतों को मुठभेड़ में मार गिराया। झाबुआ, भिंड, रीवा, सतना की 31 मुठभेड़ में इन डकैतों को मारा गया।
ट्रेनिंग में ही निपटा दिया था एक बदमाश को
दिसंबर 1990 में मीणा बेतिया पश्चिमी चंपारण में ट्रेनिंग पर थे। उनके साथ दो प्रशिक्षु आईएएस भी जो मसूरी से उनके साथ गए थे। वहां वे एक गांव में ठहरे हुए थे। रात को साढ़े 9 बजे 6-7 बदमाशों ने इनपर हमला कर दिया और सरिए से इनके सर पर वार किया। इनके साथियों ने पलंग के नीचे दुबक कर जान बचाई और बदमाशों को अपना सामान दे दिया। मीणा की जेब से सामान निकालने जब एक बदमाश आया तो उन्होंने सरिए को हाथ से पकड़ लिया। इसके बाद जब बदमाश भागने लगे तो वे एक बदमाश के पीछे भागे, रास्ते में तालाब आ गया तो वह पीछे मुड़ा। उसी समय मीणा ने सरिए का वार बदमाश के सिर पर कर दिया और वह खुद बेहोश हो गए। अगले दिन उन्हें पता चला कि जिसपर उन्होंने घायल होने के बावजूद वार किया वह तो मर गया। ये उनका पहला शिकार था।
सबसे पहला एनकाउंटर झाबुआ में और अंतिम रीवा में
झाबुआ में एसपी रहते हुए मीणा ने पहला एनकाउंटर किया था। सुरपाल भील ने अलीराजपुर में प्रोफेसर के घर में घुसकर हत्या की थी जिसे एनकाउंटर में मारा गया। इसके बाद 5 मर्डर के आरोपी जामा भील का एनकाउंटर किया गया। इसके बाद ही झाबुआ के माछलिया घाट पर चलने वाली कानबाई खत्म हुई। इससे पहले पुलिस के माध्यम से ही इस एरिए को पार किया जा सकता था।अंतिम एनकाउंटर रीवा में 25 अक्टूबर 2012 को किया जिसमें बलखड़िया गैंग के 4 डकैतों को मारा गया। इस गैंग पर 7 लाख का ईनाम था।
7 बार मौत सामने आई लेकिन हर बार चकमा दिया
जालौन में जब वे एक गैंग का सामना करने गए तो उनके साथ 11 सदस्य थे। पांच-पांच दाएं-बाएं चलना था लेकिन वे पीछे रह गए। जब गैंग से सामना हुआ और इन्होंने गोली चलाई तो पीछे कोई था ही नहीं। इनके साथियों ने 50 राउंड गोलियां चलाई जो इनके सिर के ऊपर से सर-सर करती निकलती रही। बड़ी मुशिकल से जान बची। वहीं 17 नवंबर 2011 को जब वे सुंदर पटेल को को मारने गए तो पटेल और बलखडि़या गैंग के बीच में फंस गए। पहाड़ के बीचों-बीच वे थे और ऊपर -नीचे दोनों तरफ से गोलियां चल रही थी। इसी में इनका मुखबिर केके गर्ग मारा गया जिसके बाद इन्होंने कसम ली कि सुंदर पटेल गैंग को वह खत्म कर देंगे। 24 दिसंबर 2011 को सुंदर पटेल गैंग का एनकाउंटर किया गया जिसमें सुंदर पटेल अपने साथियों के साथ मारा गया।
12 साल लड़ी अदालत की लड़ाई
2002 में गाजीराम भिंड में एसपी थे। उसी समय उन्हें सूचना मिली कि लाखनसिंह लोधी के गैंग ने एक मास्टर का अपहरण किया था और बाद में वह फिरौती देकर छूट कर आ गया। इसके दो सदस्यों को जानकारी जब इन्हे मिली तो गाजीराम ने टीआई को इसकी सूचना दी। टीआई ने एनकाउंटर में रामनाथ कोरी को मार दिया और ये ठाकुर साहब के रिश्तेदार थे। ठाकुर साहब तत्कालीन मंत्री गोविंद सिंह के रिश्तेदार थे इसलिए इस केस ने तूल पकड़ा। हर बार विधानसभा में ये मामला उठता था। 12 साल की लंबी लड़ाई के बाद सुप्रीम कोर्ट से जनवरी 2014 में इस केस से ये बरी हो पाए।
ऐसा रहा गाजीराम का करियर
1990 में इनकी पहली पोस्टिंग बालाघाट के लांझी में एसडीओपी के रूप में हुई। ये नक्सलाइट एरिया था। इसके बाद खजुराहो एसडीओपी, एएसपी सुरक्षा भोपाल, एएसपी बिलासपुर, कमांडेट 12 वीं वाहिनी, 30वीं वाहिनी बस्तर में हुई। इसके बाद 1997 मे इन्हें सीधी का एसपी बनाया गया। उसके बाद बस्तर और फिर 1999-2000 में झाबुआ में एसपी रहे। यही इन्होंने पहली मुठभेड़ में सुरपाल भील का एनकाउंटर किया था। उसके बाद इनका अगला पड़ाव दस्यु प्रभावित जिला भिंड था जहां 18 महीनो में 17 एनकाउंटर किए और 26 डकैत मारे। इसी के बाद इन्हें पहली बार राष्ट्रपति वीरता पदक 2003 में दिया गया। इसके बाद वे ग्वालियर एसपी रहे जहां 6 डकैत मारे। फिर डीआईजी चंबल रहते हुए 4 डकैत मारे। उसके बाद भोपाल में आए और उसके बाद डीआईजी रीवा बनकर गए। 2008 में ये आईजी नॉरकाटिक्स बने और फिर आईजी रीवा। यही इनके करियर का सुनहरा दौर था जब तीन साल एक महीने में 22 डकैत मारे। रीवा से फिर ये भोपाल आए।