राकेश दुबे@प्रतिदिन। पाकिस्तानी सेना ने हाल ही में सैकड़ों नागरिकों को दहशतगर्द कहकर मार डाला। मरने वालों में वे सूफी श्रद्धालु थे, जो कराची से 284 किलोमीटर दूर सहवन कस्बे में सूफी संत लाल शाहबाज कलंदर के मजार पर धमाल कर रहे थे। धमाल ट्रांस या सम्मोहन की उस स्थिति को कहते हैं, जिसमें कोई मनुष्य खुद को पूरी तरह भूलकर परमानंद का अनुभव करता है। इस मजार पर मुसलमानों और हिंदुओं की साझी आस्था है। मजार अतीत में शैव परंपरा से जुड़ा था और आज भी एक हिंदू परिवार इसके प्रबंधन का महत्वपूर्ण अंग है। हिंदू शाहबाज कलंदर को सिंधी हिंदुओं के आराध्य सूफी संत झूले-लाल से जोड़कर देखते हैं।
सूफी मजारों पर हो रहे हमले सलाफी व सूफी इस्लाम के बीच कई शताब्दियों से जारी संघर्ष का नतीजा हैं। सलाफी या वहाबी इस्लाम मजारों और दरगाहों पर चादर चढ़ाने, कव्वाली या धमाल को गैर-इस्लामी रवायत मानता है और इनको बलपूर्वक रोकना चाहता है। पाकिस्तान की इस समस्या की जड़ ही वे मदरसे हैं, जो अरब मुल्कों के पैसों के बल पर कट्टरपंथी सोच पैदा करते हैं और यही सोच खुदकुश हमलावर तैयार करती है।
यदि किसी भी दर्शन में अगर अपनी मूल स्थापनाओं से टकराने की हिम्मत और सलाहियत न हो, तो वह जड़ हो जाता है। अपने को सबसे मजबूत दर्शन कहने वाला इस्लाम दुर्भाग्य से इस कसौटी पर खरा नहीं उतरता। शुरुआती वर्षों में इस्लाम में इज्तिहाद या आंतरिक विमर्श की परंपरा थी, जिसमें उलमा धार्मिक और दुनियावी मुद्दों पर बहस-मुबाहिसा करते थे। अब यह परंपरा समाप्त हो चली है। अमेरिका और उसके हमख्याल पश्चिम से मुस्लिम उम्मा के संबंध बड़े दिलचस्प हैं। एक तरफ तो वे उसके सबसे बडे़ दुश्मन हैं और दूसरी तरफ मुल्ला-मौलवी से लेकर साधारण मुसलमान के लिए सबसे बड़ा सपना इन देशों का वीजा हासिल करना होता है।
यह तथ्य किसी शून्य से नहीं उपजा है कि सारे मुस्लिम शरणार्थी अमेरिका या यूरोप जाना चाहते हैं। भारी-भरकम अकादमिक पदावलियों से बचते हुए अगर पश्चिम के प्रति आकर्षण के लिए किसी एक कारण को तलाशा जाए, तो कह सकते हैं कि यह उनकी जीवन-पद्धति का अंग बन चुकी खास तरह की उदारता है, जो अपने विरोधी को भी स्थान देती है। यह उदारता मैग्ना कार्टा और फ्रांसीसी क्रांति से होती हुई ‘रेनेसां’ और औद्योगिक क्रांति तक की यात्रा से आई है।
इस्लामी विद्वानों को सबसे गंभीर बहस इस बात पर करनी चाहिए कि क्यों उनके मजहब का झगड़ा दुनिया के दूसरे सभी धर्मों से चलता रहता है? बहुधार्मिक और बहुसांस्कृतिक समाज में शांतिपूर्वक रहना एक लंबे प्रशिक्षण की मांग करता है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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