
इंडो गल्फ फर्टलाइजर्स कम्पनी के प्रतिनिधि केके जिंदल की ओर से लगभग 5 लाख 35 हजार रुपए के चेक बाउंस के मामले में मेसर्स विनोद कुमार एंड कम्पनी, विवेक कुमार, विमला देवी और मुन्नी देवी के खिलाफ विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट, लखनऊ के समक्ष नेगोशिएबल इंस्ट्रुमेंट एक्ट के तहत परिवाद दाखिल किया गया। याचियों की ओर से हाईकोर्ट के समक्ष याचिका दाखिल कर उक्त परिवाद की कार्यवाही को रद्द किए जाने की मांग की गई। याचियों की ओर से दलील दी गई कि वे कम्पनी में सक्रिय पार्टनर नहीं हैं। जो चेक बाउंस हुआ है, उस पर विवेक कुमार के हस्ताक्षर थे न कि याचियों के। याचीगण कम्पनी के सीसी अकाउंट को भी ऑपरेट करने के लिए अधिकृत नहीं थे।
याचिका का शिकायतकर्ता इंडो गल्फ फर्टलाइजर्स कम्पनी की ओर से विरोध किया गया। न्यायालय ने मामले की विस्तृत सुनवाई के बाद अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का जिक्र करते हुए कहा कि नेगोशिएबल इंस्ट्रुमेंट की धारा- 141 की कार्यवाही के लिए आवश्यक है कि इस तथ्य को दृढ़तापूर्वक रखा जाए कि अपराध कारित किए जाते समय आरोपित व्यक्ति सम्बंधित कम्पनी का प्रभारी था और कम्पनी के व्यवसायिक कार्यों के लिए जिम्मेदार था।
न्यायालय ने शीर्ष अदालत द्वारा पूजा रविंदर देवदासिनी बनाम महाराष्ट्र सरकार मामले में दिए निर्णय को उद्धत किया जिसमें कहा गया है कि एक कम्पनी के कई डायरेक्टर हो सकते हैं। चेक बाउंस के मामले में किसी एक या सभी के खिलाफ मात्र डायरेक्टर होने का बयान धारा- 141 की कार्यवाही के लिए पर्याप्त आधार नहीं है। न्यायालय ने शीर्ष अदालत के उक्त आदेश के आलोक में स्पष्ट किया कि आरोपित व्यक्ति सम्बंधित समय में कम्पनी का प्रभारी और व्यवसायिक कार्यों का जिम्मेदार व्यक्ति हो। मात्र कम्पनी का डायरेक्टर होना कार्यवाही के लिए पर्याप्त आधार नहीं है। न्यायालय ने याचिका को स्वीकार करते हुए याचियों के खिलाफ परिवाद की कार्यवाही को खारिज कर दिया।