
बता दें कि मप्र में भाजपा भी दिग्विजय सिंह सरकार के खिलाफ तभी जीत पाई थी जब उसने उमा भारती के रूप में एक फायरब्रांड फेस सामने रख दिया था। इसके बाद शिवराज सिंह चौहान के नाम पर वोट मांगे गए और मिले भी। कांग्रेस ने 2008 से लेकर अब तक कोई चैहरा सामने नहीं लाया। नतीजा यह हुआ कि हर चुनाव में भाजपा जनता को दिग्विजय सिंह की संभावना से डराती है और चुनाव जीत जाती है।
माना जा रहा है कि अब तक यह बात हाईकमान को समझ आ गई होगी कि यदि मप्र में बिना सीएम कैंडिडेट के चुनाव लड़ा तो लोग दिग्विजय सिंह को ही सीएम कैंडिडेट समझ लेंगे और फिर किसी भी सूरत में कांग्रेस की जीत संभव नहीं होगी। सवाल तो यह है कि खुले मैदान में शक्तिप्रदर्शन करने निकले कमलनाथ अचानक पैंतरें क्यों बदल रहे हैं। अभी तो पहला फ्रेंडली मैच ही हुआ है। कई प्रतियोगिताएं अभी बाकी हैं।