
आरएसएस का संगठन आने वाली 6 मार्च को दिल्ली यूनिवर्सिटी में मंथन करने जा रहा है। इसमें दिल्ली समेत देशभर के पद्मावती पर शोध करने वाले इतिहासकारों को बुलाया गया है। अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना के संगठन सचिव बालमुकुंद ने बताया कि रानी पद्मावती को लेकर इतिहास को अलग-अलग तरीके से पेश किया जा रहा है, वह सच्चाई से दूर ही दिख रहा है। गोष्ठी में देशभर के इतिहासकारों को बुलाया गया है वह अपनी बात रखेंगे। इतिहासकारों की बात को एक किताब का रूप दिया जाएगा, ताकि लोग सच को जान सकें।
रानी पद्मावती की प्रचलित कहानी
रानी पद्मावती को रानी पद्मिनी पुकारा गया है। वो चित्तौड़ की रानी थी। रानी पद्मिनि के साहस और बलिदान की गौरवगाथा इतिहास में अमर है। सिंहल द्वीप (जिसे श्रीलंका भी कहते हैं) के राजा गंधर्व सेन और रानी चंपावती की बेटी पद्मिनी चित्तौड़ के राजा रतनसिंह के साथ ब्याही गई थी। रानी पद्मिनी बहुत खूबसूरत थी और उनके सौंदर्य पर एक दिन दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी की बुरी नजर पड़ गई। अलाउद्दीन किसी भी कीमत पर रानी पद्मिनी को हासिल करना चाहता था, इसलिए उसने चित्तौड़ पर हमला कर दिया। रानी पद्मिनी ने आग में कूदकर जान दे दी, लेकिन अपनी आन-बान पर आँच नहीं आने दी। इतिहास में इसे रानी का जौहर नाम दिया गया।
ईस्वी सन् 1303 में चित्तौड़ के लूटने वाला अलाउद्दीन खिलजी था जो राजसी सुंदरी रानी पद्मिनी को पाने के लिए लालयित था। श्रुति यह है कि उसने दर्पण में रानी की प्रतिबिंब देखा था और उसके सम्मोहित करने वाले सौंदर्य को देखकर अभिभूत हो गया था लेकिन कुलीन रानी ने लज्जा को बचाने के लिए जौहर करना बेहतर समझा। इनकी कथा कवि मलिक मुहम्मद जायसी ने अवधी भाषा में पद्मावत ग्रंथ रूप में लिखी है।