नई दिल्ली। नेताओं और सरकारी अधिकारियों के 'तोहफे' लेने की आदत पर भी सख्त संदेश देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पब्लिक सर्वेंट खुद को मिले 'तोहफों' को कानूनी तरीके से की गई कमाई के अंतर्गत नहीं गिना सकते हैं। जस्टिस पिनाकी चंद्र घोसे और अमिताव रॉय ने कहा, 'जयललिता को मिले तोहफे साफतौर पर गैरकानूनी और कानूनी रूप से वर्जित हैं। तोहफों को कानूनी तरीके से हासिल की गई आमदनी के रूप में दिखाने की कोशिश करना पूरी तरह से गलत है।'
खंडपीठ ने कहा, 'प्रिवेंशन ऑफ करप्शन (PC) अधिनियम 1988 के आ जाने से और पब्लिक सर्वेंट की परिभाषा तय हो जाने के बाद बचाव पक्ष की यह दलील कि जयललिता को उनके जन्मदिन पर मिले तोहफे कानूनी तरीके से हासिल की गई संपत्ति का हिस्सा हैं, न्यायिक तौर पर स्वीकार्य नहीं हैं।' पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता की ओर से अदालत में दलील के लिए पेश हुए वकील ने कोर्ट से कहा था कि अगर कोई सही जानकारी दे और उचित कर चुकाए, तो आयकर विभाग तोहफे लेने को अपराध नहीं मानता है।
वकील ने कोर्ट से अपील की कि वह भी जयललिता के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के मामले में यही रुख अपनाए। इस दलील को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'जयललिता और अन्य लोगों द्वारा अपने आयकर रिटर्न में इन तोहफों का जिक्र करने और उनपर टैक्स चुकाने से ऐसे तोहफों को लेना कानूनी तौर पर स्वीकार्य नहीं बन जाता है। उनपर लगाए गए आरोप इस आधार पर नहीं हटाए जा सकते हैं।'
जयललिता और उनके सहयोगियों-
शशिकला, वी एन सुधाकरण और जे इलावरासी पर गैरकानूनी तरीके से आय से अधिक संपत्ति जुटाने के मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने कहा कि जयललिता के खातों में बेरोकटोक और लगातार आते रहने वाले पैसों का बाकी सह-आरोपियों और कंपनियों/फर्म्स के खातों में जाना दिखाता है कि इस गैरकानूनी काम में ये सभी लोग शामिल थे। सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के उस फैसले को भी बरकरार रखा जिसमें कहा गया था कि हालांकि शशिकला, सुधाकरण और इलावरासी ने अपनी आय के अलग स्रोत होने का दावा किया था, लेकिन 'फर्म्स को बनाना और जयललिता द्वारा दिए गए पैसों से बड़ी मात्रा में जमीन खरीदना साबित करता है कि जयललिता के घर में रह रहे ये सभी सह आरोपी वहां किसी सामाजिक कारण से नहीं रह रहे थे, ना ही जयललिता ने इंसानियत के नाते उन्हें मुफ्त में अपने यहां रहने की इजाजत दी थी।'