श्याम सुमन/नई दिल्ली। व्यर्थ की जनहित याचिकाओं से अब सुप्रीम कोर्ट भी तंग आ चुका है। लोग हर छोटी बड़ी समस्या को लेकर सुप्रीम कोर्ट चले आते हैं। वो इससे पहले की प्रक्रियाएं भी पूरी नहीं करते। जबकि होना यह चाहिए कि जब आप हर तरफ से निराश हो जाएं और आपको यकीन हो कि आप सही हैं, तब सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर करें।
एक याचिकाकर्ता को डपटते हुए कोर्ट ने कहा कि क्या आपने हमें अमृतधारा समझ रखा है, पेटदर्द हो तो पिला दो, सिर दर्द हो तो पिला दो, शरीर में दुखन हो तो पिला दो। आजकल यह हो गया है कि लोग सुबह उठते हैं और तय करते हैं कि चलो सुप्रीम कोर्ट चलते हैं। आप संबद्ध प्राधिकार के पास क्यों नहीं जाते। कोर्ट ने याचिकाकर्ता जया ठाकुर के वकील वरिंदर शर्मा से कहा जिन्होंने याचिका में मांग की है कि शवों को सम्मान के साथ उनके धर्म के मुताबिक अंतिम यात्रा की सुविधा मुहैया करवाई जाए।
मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जेएस खेहर ने कहा कि जब वह छोटे थे तो उस समय एक लोकप्रिय हर्बल दवा होती थी जो हर मर्ज में काम आती थी। अगर आपके पेट में दर्द है तो अमृतधारा, सिर में दर्द है तो अमृतधारा। आजकल लोग समझते हैं कि सुप्रीम कोर्ट अमृत धारा में तब्दील हो चुका है जहां हर मर्ज की दवा है। क्या हमारे पास और कोई काम नहीं है।
याचिका में मध्यप्रदेश, उड़ीसा और उत्तर प्रदेश की घटनाओं का जिक्र था जहां परिजन अपने मृत लोगों को कई किलोमीटर कंध पर लेकर चले थे क्योंकि उन्हें एंबुलेंस नहीं मिली थी। कोर्ट ने कहा कि जब ऐसी याचिकाएं दायर होती हैं तो उन्हें उनके हर पन्ने को पढ़ना पड़ता है जिससे न्यायिक समय बर्बाद होता है। कोर्ट ने पिछले दिनों बिहार के एक एमएलए पर व्यर्थ की याचिका दायर करने पर 10 लाख रुपये का जुर्माना लगाया और उससे पूर्व महाराष्ट्र के एक शिक्षक पर एक लाख रुपये का अर्थदंड ठोका था।
जस्टिस खेहर ने व्यर्थ की याचिकाओं के खिलाफ एक अभूतपूर्व अभियान चलाया हुआ है। वह हर उस याचिका को हतोत्साहित कर रहे हैं जो व्यर्थ है। उन्होंने कहा कि वह ऐसी याचिकाओं के दायर होने की दर देखकर आश्चर्यचकित हैं। इन्हें रोकने का एक ही तरीका है कि याचिकाकर्ता पर भारी अर्थदंड लगाया जाए।