SOCIAL TRADE: लालच में लुटते है पढ़े लिखे

राकेश दुबे@प्रतिदिन। ऑनलाइन धोखाधड़ी करने वाली कंपनी का पकड़ा जाना हमारी मानसिकता के बारे में, हमारे प्रशासन के बारे में और यह भी कि इन दोनों के मेल से जो स्थितियां बनती हैं, बहुत कुछ उजागर करता है। साथ ही यह भी बताता है कि गलत तरीके अपनाने वालों को कितना बड़ा आधार मिलता हैं। जब अखबार में यह खबर पढ़ते हैं कि किसी ग्रामीण ने दोगुना करने के लालच में अपना सोना किसी बाबा के हवाले कर दिया और बाद में उस सोने से भी हाथ धो बैठा, तो हम इसके लिए उसकी जहालत को दोषी ठहराते हैं। लेकिन ऑनलाइन धोखाधड़ी कांड में जो लाखों लोग शिकार बने, वे सब पढ़े-लिखे थे। 

पढ़े-लिखे ही नहीं, वे डिजटली साक्षर लोग थे। वे अपने स्मार्टफोन या अपने कंप्यूटरों के जरिये इंटरनेट की उस दुनिया से भी जुड़े थे, जो ज्ञान का भंडार है और जहां हर तरह की सूचना उपलब्ध रहती है। आश्चर्य है कि धोखा देने वाले न सिर्फ ऐसे लोगों को पट्टी पढ़ाने में कामयाब रहे, बल्कि उनसे 3700 करोड़ रुपये की रकम भी हड़प ली। 

सबित होता है कि धोखा खाने में अक्सर अनपढ़ होने या पढ़े-लिखे होने से बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ता, और अगर आप यह मानते हैं कि घर बैठे पैसा कमाने या सोने को दोगुना करने का कोई बहुत आसान तरीका दुनिया में मौजूद है, तो इसका अर्थ है कि आप ठगे जाने के लिए पूरी तरह तैयार बैठे हैं। धोखा देने वालों के बारे में कहा जाता है कि वे किसी पर दबाव नहीं डालते, किसी से जबर्दस्ती नहीं करते, वे बस कुछ ऐसी बातें करते हैं, जिनके चक्कर में आकर आप खुद अपना धन उन्हें सौंप देते हैं।

क्या यह बात अजीब नहीं लगती कि चंद लोग एक अनजान कोने में एक छोटी-सी कंपनी खोलते हैं, देश भर के करोड़ों लोगों से संपर्क करते हैं, लाखों लोगों को सदस्य बनाते हैं, रातोंरात उनके बैंक खातों में 3700 करोड़ रुपये की रकम पहुंच जाती है और किसी सरकारी एजेंसी को कानोंकान खबर नहीं होती। इतना बड़ा काम गुपचुप ढंग से नहीं हो सकता, वह खुलेआम हुआ और किसी ने नहीं सोचा कि यह कंपनी गैर-कानूनी ढंग से पैसे क्यों जमा कर रही है? 

यह ठीक है कि हम उस व्यवस्था को बहुत पहले ही बिदा कर चुके हैं, जिसमें कोई कारोबार करने के लिए कई तरह की इजाजत लेनी पड़ती थी, कई तरह के लाइसेंस हासिल करने के लिए लाइन में लगना पड़ता था। इस व्यवस्था को हटाने के बाद हमने काफी तरक्की की है, देश में औद्योगिक संभावनाओं के लिए नए द्वार खोले हैं और उसे नया आधार दिया है। लेकिन इसमें धोखाधड़ी के खतरे भी बढ़े हैं। इसलिए सतर्कता जरूरी है। 

बिना मेहनत की आसान कमाई पर हमारा भरोसा और हमारे तंत्र की लापरवाही के बीच धोखे का धंधा चलाने वालों के लिए बहुत संभावनाएं हैं। अगर वे पकड़ भी लिए जाते हैं, तब भी कोई नहीं जानता कि अंतिम रूप से उन्हें सजा हो भी पाएगी या नहीं।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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