भोपाल। वन विभाग के 10 हजार बाबुओं (लिपिक) को 11 साल में मिले करीब डेढ़ सौ करोड़ रुपए लौटाने होंगे। विभाग ने दस साल पहले लागू किए समयमान वेतनमान के आदेश को निरस्त कर दिया है। साथ ही राशि की वसूली के आदेश भी जारी किए हैं। एक बाबू पर लगभग डेढ़ लाख रुपए निकल रहे हैं। विभाग ने समयमान वेतनमान की कंडिका-4 को आधार बनाकर ये निर्णय लिया है।
कर्मचारियों को पदोन्न्ति के एवज में 10, 20 और 30 साल की सेवा पूरी करने पर अप्रैल 2006 से समयमान वेतनमान देने की घोषणा सरकार ने वर्ष 2008 में की थी। निर्माण को छोड़कर सभी विभागों ने लिपिकों को यह लाभ दे दिया। वन विभाग ने हाल ही में नियमों को फिर से खंगाला और बाबुओं को 11 साल पहले दिया गया लाभ वापस ले लिया। इससे लिपिक वर्ग में नाराजगी है। वसूली की राशि वेतन से काटी जाएगी। सागर सहित अन्य वन वृत्तों में आदेश का पालन शुरू हो गया है।
दस हजार बाबू पहले से लड़ रहे लड़ाई
जल संसाधन, पीएचई और पीडब्ल्यूडी के करीब 10 हजार बाबू 8 साल से समयमान वेतनमान की लड़ाई लड़ रहे हैं। योजना की कंडिका-4 को आधार बनाकर इन विभागों ने योजना का लाभ देने से इंकार कर दिया है।
लिपिकों के संगठन के अध्यक्ष मनोज वाजपेयी कहते हैं कि लिपिकों की विसंगतियों के निराकरण के लिए मप्र कर्मचारी कल्याण परिषद के अध्यक्ष रमेशचंद्र शर्मा की अध्यक्षता में गठित हाईपॉवर कमेटी भी इसकी अनुशंसा कर चुकी है।
ये कहती है कंडिका-4
योजना की कंडिका-4 कहती है कि पदोन्न्ति के मापदंड पूरे करने वाले कर्मचारी ही इस योजना के लिए पात्र होंगे। जल संसाधन, पीएचई और पीडब्ल्यूडी ने लिपिकों को योजना का लाभ इसीलिए नहीं दिया।
विभागों का तर्क है कि उनके यहां कोई भी लिपिक इस पात्रता को पूरा नहीं करता है। कर्मचारियों को विभागीय परीक्षा पास करना भी अनिवार्य है। इसमें लेखा से संबंधित 6 पेपर हल करने पड़ते हैं।
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लिपिक संवर्ग की विसंगतियों के निराकरण के लिए गठित हाईपॉवर कमेटी ने मुख्यमंत्री को प्रतिवेदन सौंप दिया है। उसमें जल संसाधन विभाग के लिपिकों को समयमान न मिलने की बात प्रमुखता से उठाई है। विभाग वित्त को प्रस्ताव भी भेज रहा है। अब वन विभाग ने भी विसंगति खड़ी कर दी है। जिससे लिपिक वर्ग आक्रोशित है। यदि प्रतिवेदन पर शीघ्र कार्रवाई नहीं की गई, तो वे आंदोलन करेंगे।
इंजी. सुधीर नायक, अध्यक्ष, मंत्रालयीन कर्मचारी संघ