नई दिल्ली। उत्तरप्रदेश में भाजपा को 300 से ज्यादा सीटें हासिल हो चुकीं हैं। वो पूर्ण बहुमत में है और सरकार बनाने जा रही है परंतु यदि 2014 से तुलना की जाए तो 328 की तुलना में उसे कोई खास बढ़त नहीं मिली है। यूपी के वोटर्स ने 2014 में ही उत्तरप्रदेश की तकदीर पर मोदी का नाम लिख दिया था। अखिलेश यादव सरकार समेत बसपा और कांग्रेस इस संकेत को पहचान ही नहीं पाई। 2014 में पहली बार हुआ था कि यूपी ने जातिवाद के खिलाफ वोटिंग की थी और विधानसभा चुनाव में भी जातिवाद का जाल तोड़कर उत्तरप्रदेश बाहर निकल आया है।
उत्तरप्रदेश में बीजेपी की 15 साल बाद सत्ता में वापसी होने जा रही है। बीजेपी यूपी में 1985 से चुनाव लड़ रही है। पहले चुनाव में उसने यूपी में 16 सीटें जीती थीं। 2017 के चुनाव में बीजेपी ने 1991 का रिकॉर्ड तोड़ दिया। इस बार उसे 300 से ज्यादा सीटें मिल रही हैं। राम मंदिर मुद्दे पर बीजेपी को 1991 में 221 सीटें मिलीं और कल्याण सिंह की अगुआई में सरकार बनी।
लहर नहीं मूलभूत परिवर्तन है
उत्तरप्रदेश में जो मतदान सामने आया है, उससे स्पष्ट हो रहा है कि यह कोई लहर या आंधी नहीं है। यह मतदाताओं के मन का परिवर्तन है। वोटर्स ने जातिवाद और साम्प्रदायिकता के खिलाफ वोट दिया है। इस चुनाव में बसपा ने साम्प्रदायिक कार्ड का फायदा उठाने की कोशिश की थी। मुस्लिम वोट को फोकस किया था लेकिन उनकी यह इंजीनियरिंग पूरी तरह से फैल हो गई। सपा को जातिवाद के वोटों का ही सहारा था परंतु वह तो लोकसभा में ही खिसक गया था। कांग्रेस ने भी इस बार अपनी मूल विचारधारा को बदलते हुए जातिवाद पर फोकस किया था। इसलिए उसे भी कोई तवज्जो नहीं मिली। 2014 के लोकसभा चुनाव में वह 328 विधानसभा सीटों पर आगे थी। वही वोटर विधानसभा में भी कायम रहा है। 1980 में यूपी में असेंबली इलेक्शन में कांग्रेस को 309 सीटें मिली थीं। अब 37 साल बाद ऐसा हुआ है कि किसी पार्टी को 300+ सीटें मिलीं हैं।