![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi5BAcfFKcjmi6AJW6GDZXNBCt0ZcOEOQy3cRq85-G0Zquh-BXQnCAb8yeG2aoiDxsjJbT7gLisc37xhlsnReWfTa_vy_a6SCm7nKObhVvvB24Bg6JQCFY3FC_cgg1Ovz014SnrrzGwkXM/s1600/55.png)
बता दें कि इससे पहले 8वीं तक अनिवार्य रूप से उत्तीर्ण करने की पॉलिसी लागू थी। इसी के चलते शिक्षा का स्तर लगातार गिरता जा रहा था। बार बार यह मांग की जा रही थी कि 5वीं एवं 8वीं की परीक्षाओं को पहले की तरह बोर्ड परीक्षाएं कर दिया जाए ताकि बच्चों को बचपन से ही बोर्ड की परीक्षाएं देने की आदत पड़ जाए और इसके लिए वो कड़ी मेहनत करना भी सीखे।
अब तक क्या परेशानी थी
'नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009(आरटीई)' की धारा-30 में पहली से आठवीं तक बोर्ड परीक्षा कराने की मनाही है। ऐसा विद्यार्थियों को बोर्ड परीक्षा के डर से मुक्त रखने के लिए किया गया है।
कब लिया गया निर्णय
आरटीई एक्ट एक अप्रैल 2010 से देशभर में लागू हुआ है। इसके तहत पहली से आठवीं कक्षाओं की परीक्षा नहीं कराई जा सकती है। इनमें सिर्फ मूल्यांकन कराने की अनुमति है। उधर, मप्र ने आरटीई लागू होने से पहले ही 5वीं और 8वीं को बोर्ड परीक्षा से मुक्त कर दिया था। वर्ष 2008 में तत्कालीन स्कूल शिक्षामंत्री स्व. लक्ष्मण सिंह गौड़ के अनुशंसा से राज्य सरकार ने यह निर्णय लिया था।