
नगरीय विकास एवं आवास विभाग ने प्रस्ताव तैयार कर लिया है। हाल ही में हुई वरिष्ठ सचिवों की समिति ने इसे मंजूरी दे दी है। अब कैबिनेट के बाद विधानसभा में विधेयक लाकर संशोधन को मंजूरी दी जा सकती है। विभाग की मंत्री माया सिंह का कहना है कि अभी सिर्फ प्रस्ताव तैयार हुआ है। कैबिनेट में चर्चा के बाद ही फैसला होगा।
जानिए तीन बड़े बदलावों का असर
1. धारा 23 - लैंडयूज बदलवाने के लिए मंत्रालय की बजाय टीएंडसीपी संचालनालय में ही आवेदन, दावे-आपत्ति व अन्य कार्रवाई होगी। - लैंडयूज के मामले तेजी से निपटेंगे। हालांकि, अंतिम बदलाव सरकार की सहमति से होगा।
2. धारा 16 - बिल्डर बढ़ाए गए निवेश क्षेत्र में अपनी विकास अनुमति में कर सकेंगे बदलाव। - मास्टर प्लान से छेड़खानी बढ़ेगी। शहरी विकास की प्लानिंग गड़बड़ाएगी। बिल्डर प्लान के आने से पहले ही अनुमति लेकर मनमाफिक बदलाव करेंगे।
3. धारा 34 - पूरी धारा ही हटेगी - किसानों और जमीन मालिक मुआवजे का नहीं कर पाएंगे दावा। अफसरों की मनमर्जी बढ़ेगी।
यह है सरकार की मंशा
पहले लोग अधिग्रहण से बचना चाहते थे, लेकिन अब केंद्र सरकार के नए कानून के तहत शहरी क्षेत्रों में दोगुना और ग्रामीण में चार गुना मुआवजे की रकम मिलती है। यह जमीन मालिक के लिए फायदे का सौदा है। धारा 34 में ऐसे सभी जमीन मालिक जिन्हें मास्टर प्लान में प्रस्तावित उपयोग से नुकसान हो रहा है, वे मुआवजे के लिए अपील कर सकते थे। लिहाजा, प्रदेश सरकार धारा को खत्म कर मुआवजा देने से बचना चाहती है।
पहले भी सरकार लाई थी अध्यादेश
जमीन अधिग्रहण में आने वाली दिक्कतों को देखते हुए सरकार ने सितंबर 2016 में टीएंडसीपी अध्यादेश लेकर आई थी। इसमें वर्ष 1973 से सारे संशोशन लागू माने गए। जोनल प्लान की अनिवार्यता, जमीन अधिग्रहण की शर्तें सब कुछ खत्म कर दिया गया। विधानसभा में अध्यादेश रख सरकार ने 9 जनवरी 2017 को अधिनियम में भी बदलाव कर दिया। अब सरकार को पुरानी योजनाओं में मुआवजा देने की जरूरत नहीं।
तीन महीने पहले हुए बदलाव में अंग्रेजो के जमाने की बंदिशें
यदि किसी जमीन मालिक को न्याय नहीं मिला तो वह कोर्ट भी नहीं जा सकता है।
3 साल की समय सीमा खत्म यानी कभी भी जमीन अधिग्रहण हो सकता है।
कानून में संशोधन 43 साल पहले लागू करने से कई विसंगतियां हुई।
एक्ट में बदलाव की मंजूरी राष्ट्रपति से भी नहीं ली गई।
जोनल प्लान की अनिवार्यता खत्म करने से शहरों में अनियोजित विकास