गुवाहाटी। असम में सीएम सर्बानंद सोनोवाल की कैबिनेट द्वारा स्कूलों में आठवीं कक्षा तक संस्कृत अनिवार्य कर दिया गया है। इस फैसले का राज्य में काफी विरोध हो रहा है। लोग अपनी क्षेत्रीय भाषा 'असमिया' से कोई समझौता नहीं चाहते। छात्र संगठनों एवं विपक्षी दलों ने राज्य कैबिनेट के इस फैसले की आलोचना की है। ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) ने स्कूलों में असमिया को प्रोत्साहित करने के बजाय संस्कृत को अनिवार्य करने के निर्णय की निंदा की है। बता दें कि सर्बानंद असम में पहले भाजपाई मुख्यमंत्री हैं।
आसू के मुख्य सलाहकार समुज्जल भट्टाचार्य ने कहा, "हम राज्य बोर्ड के अंतर्गत आने वाले स्कूलों में संस्कृत अनिवार्य किए जाने के असम कैबिनेट के फैसले के विरोध में नहीं हैं, लेकिन सरकार को यह स्पष्ट करना चाहिए कि क्या अन्य राज्यों में चल रहे तीन भाषा फॉर्मूले के बजाय असम में चार भाषा फॉर्मूला लागू होगा।
स्कूलों में असमिया की पढ़ाई के साथ कोई समझौता नहीं किया जा सकता है।" असम जातियतावादी युवा छात्र परिषद (एजेवाइसीपी) के अध्यक्ष बिराज कुमार तालुकदार ने कहा कि राज्य में संस्कृत के शिक्षकों की कमी है, इसलिए अब असम सरकार दूसरे राज्यों से संस्कृत शिक्षकों की नियुक्ति की तैयारी कर रही है, लेकिन हम इसे स्वीकार नहीं करेंगे।
उनके मुताबिक (एजेवाइसीपी) राज्य के स्कूलों में संस्कृत पढ़ाए जाने के खिलाफ नहीं है क्योंकि यह एक प्राचीन भाषा है, जिसे प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। लेकिन सरकार जिस प्रकार से यह विषय थोपने का प्रयास कर रही है, उसे लेकर हमें चिंता है।
सरकार अच्छी तरह जानती है कि राज्य में संस्कृत शिक्षकों की कमी है, इसके बावजूद वह यह कदम उठा रही है। कृषक मुक्ति संग्राम समिति (केएमएसएस) के नेता अखिल गोगोई ने कहा कि संस्कृत को थोपने के बजाय राज्य सरकार को सभी स्कूलों में असमिया की पढ़ाई शुरू करने की दिशा में कदम उठाना चाहिए था। असम कैबिनेट ने 28 फरवरी को हुई बैठक में राज्य बोर्ड के स्कूलों में संस्कृत अनिवार्य करने का फैसला लिया था।