उपदेश अवस्थी। चाहे अमित शाह इस जीत का श्रेय कार्यकर्ताओं को दें या मोहन भागवत अपने प्रचारकों को लेकिन आज जो चुनाव परिणाम आए हैं उनसे प्रमाणित हो गया है कि यह जनादेश केवल और केवल मोदी को मिला है। केंद्र में मोदी ही हैं। बाकी सब आसपास है। मनोहर पर्रिकर जैसे नेता गोवा नहीं जीत पाए, प्रकाश सिंह बादल जैसे नेता पंजाब में बुरी तरह पिट गए। हां मप्र में शिवराज सिंह चौहान ने जो मोदी की तरह चुनाव जिताऊ नेता हैं। पूरी भाजपा में मात्र 2 नेता हैं जो किसी को भी चुनाव जिता सकते हैं।
राजनीति में चुनाव जीतना बड़ी बात है, लेकिन किसी निकम्मे प्रत्याशी को चुनाव जिता देना बहुत बड़ी बात है। मोदी ने यही करिश्मा कर दिखाया है। लिस्ट उठाकर देख लीजिए, अकेले में अमित शाह और मोहन भागवत भी यह स्वीकार करेंगे कि इस चुनाव में जीते कई प्रत्याशी तो ऐसे हैं, जिनकी उम्मीद किसी को नहीं थी। हां, यह स्वीकारना होगा कि कार्यकर्ताओं ने मेहनत की। किसी से छुपा नहीं है कि आरएसएस के प्रचारकों ने जमीन तैयार की, लेकिन यह 100 प्रतिशत खालिस सच है कि यदि मोदी की तूफानी सभाएं ना होतीं तो नतीजे ऐसे चौंकाने वाले नहीं होते।
रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर को गोवा का सर्वमान्य नेता माना जाता था। बड़ी प्रतिष्ठा थी पर्रिकर की। इसीलिए गोवा चुनाव के लिए उन्हे मंत्रालय से छुट्टी दे दी गई थी। वो पूरे समय गोवा में रहे। हर कोई आश्वस्त था कि पर्रिकर स्थिति को अपने फेवर में ले आएंगे और गोवा हर हाल में भाजपा के पास होगा। पंजाब में भी किसी ने नहीं सोचा था कि यह हालत बनेगी। जो कांग्रेस पूरे देश में चित हो गई, वो पंजाब में सरकार बना पाएगी। केजरीवाल के मुगालतों का तो जिक्र ही बेमानी है परंतु पंजाब से जो जनादेश आया उसने भी प्रमाणित कर दिया कि मोदी नहीं तो भाजपा भी नहीं।
पूरे देश में एक और नेता है जो मोदी की तरह किसी भी प्रत्याशी को चुनाव जिताने की दम रखता है। मैं सैंकड़ों बार शिवराज सिंह के फैसलों का खुला विरोध करता हूं। मप्र में यदि शिवराज सिंह विरोधी लहर चल रही है तो उसमें मेरा भी योगदान है। शिवराज सिंह के सत्ता संचालन के तरीके से व्यक्तिगत रूप से कतई सहमत नहीं हूं, परंतु इस बात को नकारना बेईमानी होगा कि वो किसी भी प्रत्याशी को चुनाव जिताने का माद्दा रखते हैं। इतिहास गवाह है वहां गुजरात में यदि मोदी ने चमत्कारी चुनाव परिणाम दिए तो यहां मप्र में शिवराज सिंह चौहान ने भी दिए। मोदी की मदद नहीं मिली तो पंजाब और गोवा हार गए। लेकिन मप्र में शिवराज सिंह, बिना मोदी को तकलीफ दिए ऐसे ही नतीजे ले आते हैं। टिकट मिलते ही हार जाने वाले प्रत्याशियों को भी शिवराज सिंह ने जीत दिलाई है। दोनों के तरीके भी एक जैसे हैं। इतनी सभाएं, इतना संवाद कि जनता सब भूल जाए। विरोधियों के हमलों का कोई दवाब नहीं। हर मुश्किल से बाहर निकलने का हुनर। काश सत्ता संचालन का तरीका भी बिना दवाब और भेदभाव वाला होता।