नई दिल्ली। एबीवीपी के विरोध को देशद्रोह करार देने पर तुले मोदी सरकार के मंत्री पूरे मामले को भटकाने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं। गृहराज्य मंत्री किरन रिजिजू की लगाई आग में अब रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर ने भी घी डाल दिया है। उन्होंने कहा कि वो कानूनी दायरे में अभिव्यक्ति की आजादी का समर्थन करते हैं। सवाल यह है कि गुरमेहर ने सोशल मीडिया पर एबीवीपी का विरोध करके कौन सा कानून तोड़ दिया।
दिल्ली विश्वविद्यालय में 2 छात्र संगठनों के बीच चल रहे विवाद पर सबसे पहले गृहराज्य मंत्री किरन रिजिजू ने आग लगाई। रिजिजू ने एक के बाद एक कई ट्वीट किए और मामले को भड़काया। उन्होंने इस मामले को बड़ी ही चतुराई के साथ मोड़ दिया। एबीवीपी के विरोध को देश का विरोध करार दे दिया। इसके अलावा हरियाणा में भाजपा सरकार के मंत्री अनिल विज ने तो भड़काने वाला बयान दिया। उन्होंने कहा कि जो लोग गुरमेहर का समर्थन कर रहे हैं, उन्हे देश से निकाल देना चाहिए।
अब रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर ने भी घी डालने का काम कर दिया। सवाल यह है कि सत्ता में बैठे लोगों की जिम्मेदारी होती है कि वो मामलों को शांत कराने की कोशिश करें, लेकिन यहां वो भड़काने की कोशिश करते हैं। हर विषय को देशभक्ति के साथ जोड़ देते हैं। यदि वो कहती है कि 'उसके पिता को पाकिस्तान ने नहीं युद्ध ने मारा है' तो इसके पीछे भी एक गहरी सोच है। इसका अर्थ वही समझ सकता है जो शांति चाहता हो। यह लाइन देशद्रोह तो नहीं हो सकती। सोशल मीडिया पर उसे रेप करने की धमकियां दी जा रहीं हैं। हालात यह हो गए कि गुरमेहर ने अपना फेसबुक अकाउंट ही डीलिट कर दिया। सोशल मीडिया पर लोग क्या कह रहे हैं, बॉलीवुड या खिलाड़ी क्या कह रहे हैं, इससे फर्क नहीं पड़ता लेकिन सत्ता में बैठे लोग और सत्ताधारी संगठन के नेता क्या कहते हैं, इससे फर्क पड़ता है। क्यों ऐसे लोग सरकार का हिस्सा बने हुए हैं जो शांति की बात करना नहीं चाहते। जो कानून हाथ में लेने वाले बयान देते हैं।