राकेश दुबे@प्रतिदिन। केरल के कोझिकोड में, फिर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यालय को निशाना बना कर विस्फोट किया गया। उज्जैन में एक संघ कार्यकर्ता ने बगदादी के भाषा में केरल के मुख्मंत्री का सर कलम करने वाले के लिए इनाम को घोषणा की, जिसे संघ ने गलत बताया। दिल्ली विवि में छात्र राजनीति कैम्पस से निकल कर सड़क पर आ गई। देश के राष्ट्रपति इस सब से चिंतित है। चिंतित तो देश का हर वो नागरिक भी है, जो समाज में समरसता के साथ जीना चाहता है। जिस हिंसा और नफरत का भारत में स्थान नहीं होना चाहिए, वो बढ़ रही है। रोकिये, सब मिलकर इसे रोकिये।
भारत के राष्ट्रपति ने संदेश दिया है कि “अशांति की संस्कृति का प्रचार करने के बदले छात्रों और शिक्षकों को तार्किक चर्चा और बहस में शामिल होना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि छात्रों को अशांति और हिंसा के भंवर में फंसा देखना दुखद है। उनकी टिप्पणी दिल्ली विश्वविद्यालय में एबीवीपी और वाम समर्थित आइसा के बीच जारी गतिरोध और राष्ट्रवाद व स्वतंत्र अभिव्यक्ति को लेकर हो रही बहस की पृष्ठभूमि में आई है।
इन दिनों विचार पर हावी हिंसा के सिरमौर राज्य केरल में एक व्याख्यान देते हुए श्री प्रणव मुखर्जी ने कहा, “यह देखना दुखद है कि छात्र हिंसा और अशांति के भंवर में फंसे हुए हैं। देश में विश्वविद्यालयों की प्राचीन गौरवशाली संस्कृति को रेखांकित करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे प्रमुख उच्चतर शिक्षण संस्थान ऐसे यान हैं जिससे भारत अपने को ज्ञान समाज में स्थापित कर सकता है। उन्होंने कहा कि शिक्षा के ऐसे मंदिरों में सृजनात्मकता और स्वतंत्र चिंतन की गूंज होनी चाहिए।
राष्ट्रपति मुखर्जी ने महिलाओं पर हमले, असहिष्णुता और समाज में गलत चलनों को लेकर भी आगाह किया। उन्होंने कहा कि देश में ‘असहिष्णु भारतीय’ के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए क्योंकि यह राष्ट्र प्राचीन काल से ही स्वतंत्र विचार, अभिव्यक्ति और भाषण का गढ़ रहा है। मुखर्जी ने कहा कि अभिव्यक्ति और बोलने की स्वतंत्रता का अधिकार हमारे संविधान द्वारा प्रदत्त सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण मौलिक अधिकारों में से एक है। वैध आलोचना और असहमति के लिए हमेशा स्थान होना चाहिए।
राष्ट्रपति की यह नसीहत उन आम लोगो की चिंता का प्रतिबिम्ब है, जो देश में समरसता से रहना चाहते हैं। देश के लिए चुनाव लड़ने के अलावा कुछ करना चाहते हैं। दुर्भाग्य से देश नफरत के भंवर में फंस रहा है। इसे रोकिये, सब मिलकर रोकिये।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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