राकेश दुबे@प्रतिदिन। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड में शर्मनाक पराजय और गोवा, मणिपुर में सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद सरकार न बना पाने की विफलता के बाद कांग्रेस पार्टी में सांगठनिक बदलाव की विचार प्रक्रिया तेज हो गई है। हालांकि, 2014 के लोक सभा चुनाव में हुई करारी हार के बाद पार्टी नेतृत्व ने बदलाव के संकेत दिए थे, लेकिन इस दिशा में कोई ठोस पहल नहीं की गई. संगठन में शिद्दत से बदलाव की आवश्यकता महसूस कर रहे पार्टी के वरिष्ठ नेता सत्यव्रत चतुव्रेदी का उच्च नेतृत्व के यथास्थितिवादी रुख पर निराशाजनक टिप्पणी के बाद कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने पार्टी में ढांचागत बदलाव की जरूरत को स्वीकार कर लिया है।
उम्मीद है कि उन्हें अपने मन मुताबिक बदलाव करने के लिए कांग्रेसी नेताओं को अपने पदों से इस्तीफा देना पड़ेगा। पार्टी महासचिव बीके हरिप्रसाद ने ओडिशा केस्थानीय निकायों में पार्टी की हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए अपना इस्तीफा देकर इसकी शुरुआत कर दी है लेकिन संगठन में मात्र बदलाव करके क्या कांग्रेस अपना खोया हुआ जनाधार दोबारा अर्जित कर पाएगी? यह यक्ष सवाल है, जिससे कांग्रेस पार्टी को सामना करना होगा।
उसे देश की बदली हुई राजनीति में अपनी सैद्धांतिकी की पुनर्व्याख्या भी करनी होगी। कांग्रेस को इस बात पर भी मंथन करना होगा कि बदले हुए राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में भी क्या वह पंडित नेहरू और श्रीमती गांधी की अर्थनीति और समाज नीति के साथ ही आगे बढ़ना चाहती है। अगर ऐसा ही है तो उसे यह स्वीकार करने में संकोच नहीं करना चाहिए यह विचारधारा अब विफल हो गई है। आखिर, किस विचारदर्शन के जरिये उसके साथ नये लोग जुड़ेंगे, इस सवाल पर भी उसे विचार मंथन करने की जरूरत है। जनता का भरोसा जीतने के लिए उसे भाजपा की गरीबों को लक्षित करके बनाई गई अंत्योदय, मुफ्त रसोई गैस आदि का मुकाबला करने के लिए अपने आर्थिक एजेंडे को बताना होगा।
उप्र और उत्तराखंड के चुनाव नतीजों का यह भी एक संकेत है कि मतदाताओं में सबसे ज्यादा असंतोष सोनिया गांधी और राहुल गांधी के नेतृत्व को लेकर है। तो क्या उच्च नेतृत्व इस पर भी विचार विमर्श करेगा। सही मायने में अगर कांग्रेस को जीवित रहना है तो उसे एक बार फिर भारतीय राजनीति और समाज को समझने की कोशिश करनी होगी। संगठन में पुराने चेहरों को बदलकर नये चेहरे लाने मात्र से कांग्रेस अपनी खोयी हुई प्रतिष्ठा और पहचान अर्जित करने में सफल नहीं हो सकती।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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