भोपाल। कर्मचारी संगठन सपाक्स की ओर से आरोप लगाया गया है कि प्रमोशन में आरक्षण मामले में दूसरे कर्मचारी संगठन अजाक्स के द्वारा नियुक्त किए गए वकीलों की फीस भी शिवराज सिंह सरकार, सरकारी खजाने से चुका रही है। जबकि सपाक्स के वकीलों की फीस कर्मचारीगण चंदा जमा करके चुका रहे हैं। सरकार का यह कदम जनता के धन का दुरुपयोग है।
सपाक्स की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार पदोन्नति में आरक्षण के संबंध में पूंछे गये एक प्रश्न के उत्तर में दिनांक 23.02.2017 मध्यप्रदेश विधानसभा में शासन द्वारा दी गई जानकारी भ्रमित करने वाली है। उक्त विधानसभा प्रश्न से माननीय विधायक द्वारा पूछा गया था कि प्रकरण में शासन की ओर से कितने वकील लगाये गये हैं उनके नाम तथा उन्हें भुगतान की गयी राशि के साथ-साथ यह विवरण भी मांगा गया था कि कौन-कौन से वकील कब-कब पैरवी के लिए उपस्थित हुये।
प्रश्न के उत्तर में शासन द्वारा जो जानकारी सदन को दी गयी उसके अनुसार उक्त प्रकरण में कुल 15 वकील लगाये गये, जिनमें श्री के.के. वेणुगोपाल तथा श्रीमति इंदिरा जयसिंह शामिल हैं। नियुक्त किये गये इन वकीलों में से श्रीमति इंदिरा जयसिंह को रूपये 7.55 लाख का भुगतान 30 जनवरी 2017 को किया गया। जबकि श्री के.के. वेणुगोपाल को भुगतान किया जाना शेष बताया गया।
यह उल्लेखनीय है कि माननीय सर्वाेच्च न्यायालय में श्रीमति इंदिरा जयसिंह प्रकरण क्रमांक-11816/2016 जो मध्यप्रदेश अनुसूचित जाति/जनजाति संगठन (विरूद्ध अनिल कुमार सिंह एवं अन्य) के लिए उपस्थित हुई थीं। इसी प्रकार श्री के.के. वेणुगोपाल प्रकरण क्रमांक-11817/2016, डॉ. जी.के. वर्मा एवं अन्य (विरूद्ध डॉ. टी.पी. वेद एवं अन्य) में वादी की ओर से उपस्थित हुए थे। शासन के द्वारा दायर प्रकरण 11822-11825/2016, 11837-11840/2016, 11842-11845/2016, 11847-11850/2016 तथा 701-714/2017 में क्रमशः श्री हरीश साल्वे, श्री मनोज गोरकेला, श्री एस. आर. हेगड़े, श्री बी. शेखरराव, श्री कपिल सिब्बल, श्री पी. राज चौहान माननीय सर्वाेच्च न्यायालय में उपस्थित हुये थे। यह सभी प्रकरण पदोन्नति में आरक्षण के मूल प्रकरण से सम्बध हैं एवं इन सभी प्रकरणों में लगाये गये निजी पक्षों को भुगतान की गयी राशि का विवरण भी शासन द्वारा बताया जाना चाहिए।
उपरोक्त तथ्यों से यह स्पष्ट है कि मध्यप्रदेश शासन द्वारा भ्रामक जानकारी देकर सदन को गुमराह किया गया जो सदन की स्पष्ट अवमानना है। यह भी उल्लेखनीय है कि श्रीमति इंदिरा जयसिंह एवं श्री के.के. वेणुगोपाल जिन वादियों के लिए खड़े हुए हैं स्वयं उन्होंने माननीय न्यायालय के सम्मुख यह तथ्य रखा है कि मध्यप्रदेश शासन द्वारा उच्च न्यायालय जबलपुर में पदोन्नति में आरक्षण प्रकरण में सम्पूर्ण तथ्य नहीं रखे एवं ठीक तरह से पक्ष न रखने के कारण माननीय उच्च न्यायालय में शासन की हार हुई।
ऐसे में यह अजीब स्थिति है कि शासन द्वारा स्वयं ऐसे अधिवक्ताओं को अनुबंधित किया गया है जिन्होंने शासन के ही विरूद्ध कथन माननीय सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष रखे हैं। सैध्दांतिक एवं नीतिगत दृष्टिकोण से भी यह गलत है।
शासन द्वारा इस प्रकरण में जिन अधिकारियों को प्रभारी अधिकारी नियुक्त किया गया है वे स्वयं अनुसूचित जाति/जनजाति वर्ग से हैं एवं अजाक्स संगठन के सक्रिय सदस्य हैं। ऐसे में यह स्वतः स्पष्ट है कि शासन की निष्पक्षता की नीति के विरूद्ध उक्त अधिकारियों की सलाह पर शासन द्वारा ऐसे वकीलों को अनुबंधित किया गया है जो स्वयं अजाक्स द्वारा दायर प्रकरण में शासन के ही विरूद्ध तथ्य माननीय न्यायालय के समक्ष रख रहे हैं।
इन तथ्यों से यह स्पष्ट है कि पदोन्नति में आरक्षण प्रकरण में एक वर्ग विशेष के पक्ष में न सिर्फ शासन स्वयं लड़ रहा है बल्कि अजाक्स संगठन और अन्य के द्वारा नियुक्त वकीलों को भी शासन अनैतिक रूप से शासन के लिए नियुक्त बताकर शासकीय धन मुहैया करा रहा है। जो माननीय मुख्यमंत्री के दिनांक 12 जून 2016 को भोपाल में आयोजित अजाक्स के महासम्मेलन में सार्वजनिक रूप से की गयी घोषणाओं के अनुरूप है एवं यह स्पष्ट है कि शासन एक वर्ग विशेष के लिये सभी नीतियों को ताक पर रख बहुसंख्यक वर्ग के न्यायायिक हितों पर कुठाराघात कर रहा है एवं अनैतिक रूप से स्वयं द्वारा की गयी कार्यवाही को जायज़ ठहराने के लिए गलत तथ्य सदन में रखकर सम्पूर्ण विधायिका को गुमराह कर रहा है।
यहा यह भी उल्लेखनीय है कि उक्त प्रकरण में जब केन्द्र शासन के एटार्नी जनरल, मध्यप्रदेश शासन के अतिरिक्त महाधिवक्ता स्वयं पैरवी कर रहे हैं तो अन्य किसी वकील की आवश्यकता शासन को क्यों है? क्या उपरोक्त सक्षम अधिवक्ताओं जिन्हें स्वयं शासन द्वारा चयनित किया गया है कि क्षमताओं पर स्वयं शासन को कोई विश्वास नहीं है।