अनामिका सिंह। स्वस्थ मन और स्वस्थ तन जीवन की सबसे बड़ी जरूरत और सबसे बड़ी पूंजी है। किसी भी देश के संपूर्ण विकास के लिए यह आवश्यक है कि वहां की जनता स्वस्थ हो। स्वस्थ भारत का सपना साकार करने के लिए सरकार अथक प्रयास कर रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सबसे पहले योग को लोगों के बीच लोकप्रिय बनाने की पहल की। पंद्रह साल बाद नई राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति तैयार की गई है। पिछले सप्ताह इसे कैबिनेट से मंजूरी मिल गई। इसमें प्रयास किया गया है कि सभी को निश्चित और बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं मिले।
दस-पंद्रह साल बाद सरकार ने लोगों के स्वास्थ्य की जिम्मेदारी उठायी है इससे पहले सरकार हेल्थ केयर की जिम्मेदारी नहीं ले रही थी। नई स्वास्थ्य नीति में कुछ सुविधाएं बढ़ा दी गई हैं। इससे पहले वर्ष 2002 में स्वास्थ्य नीति बनाई गई थी। इसमें सिक केयर पॉलिसी के जरिए बीमारी के उपचार पर जोर दिया गया था। लेकिन नई स्वास्थ्य नीति में सिक केयर से हटकर वेलनेस पर ध्यान दिया गया है। अर्थात् रोग से निरोग की ओर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। इस कड़ी में एक स्वस्थ नागरिक अभियान की परिकल्पना की गई है। जिसमें लोग ऐसी लाइफ स्टाइल जिएं की बीमार ना पड़ें।
जनवरी 2015 में स्वास्थ्य नीति का पहला ड्राफ्ट आया था। जिसमें स्वास्थ्य क्षेत्र में होने वाले खर्च का अनुमान लिया गया था और जनस्वास्थ्य की बात कही गई थी। खर्च का अनुमान करना बहुत जरूरी है क्योंकि जब तक सरकार इस पर खर्च नहीं करेगी तो ना ही ये इंस्टीट्यूशन बन के खड़े हो पाएंगे और ना ही गुणवत्तापूर्ण और कम कीमतों पर स्वास्थ्य सेवाएं संभव हो पाएंगी।
ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी अच्छे डॉक्टरों की कमी बनी हुई है। एक डॉक्टर को सोलह से इक्यासी मरीजों का इलाज करना पड़ता है। इसके लिए भी सरकार की ओर से प्रयास किए जा रहे हैं। मेडिकल कॉलेजों में अब प्रतिवर्ष चालीस हजार की बजाय पैंसठ हजार चिकित्सकों का दाखिला हो रहा है। नीति में यह भी रखा गया है कि जिला अस्पतालों को मेडिकल कॉलेज में अपग्रेड किया जाएगा। इसका फायदा यह होगा कि जहां अभी तक मेडिकल कॉलेज नहीं थे वहां कालेज स्थापित होंगे और यह संभावना है कि वहां से जो चिकित्सक निकलेंगे वे ग्रामीण क्षेत्रों में अपनी सेवाएं देंगे। 2025 तक की जो परिकल्पना है वह वास्तविक है कि सरकार सभी ग्रामीण क्षेत्रों में अच्छे चिकित्सकों की सुविधा सुनिश्चित कर देगी।
आजकल की जो गंभीर बीमारियां हैं उनके इलाज के लिए प्राइवेट अस्पतालों का सहारा लेना पड़ता है। प्राइवेट अस्पतालों ने अपना एक मानक बना रखा है और प्राइवेट अस्पताल इलाज के लिए आपसे कोई भी खर्च मांग सकता है। प्राइवेट अस्पतालों में खर्च काफी ज्यादा आता है। उस खर्च के बोझ से दबकर लोग अपनी जमीन जायदाद बेच देते हैं।
नई स्वास्थ्य नीति में निजी क्षेत्र को जोड़ने की बात कही गई है। जिन क्षेत्रों में सरकारी तंत्र में कमियां हैं वहां पर प्राइवेट सेक्टर और एनजीओ सेक्टर की भागीदारी बढ़ायी जाएगी स्वास्थ्य नीति के तहत अगले पाँच वर्षों में सकल घरेलू उत्पाद का 2.5 प्रतिशत जनस्वास्थ्य पर खर्च किया जाएगा जो मौजूदा 1 प्रतिशत के स्तर से अधिक है। देखना यह है कि नई स्वास्थ्य नीति लोगों के लिए कितना कारगर साबित होती है।