राकेश दुबे@प्रतिदिन। उत्तर प्रदेश को छोड़कर बाकी चार राज्यों पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर की बात करें तो जनादेश कई बहसों और मसलों को विस्तार देता दिखता है। भाजपा की उत्तर प्रदेश में प्रचंड जीत का असर पड़ोसी उत्तराखंड में भले ठसक के साथ परिलक्षित होता हो लेकिन बाकी सूबों में परिणाम इस तरफ भी इशारा करते हैं कि वहां के रग-रग में बस जाने के लिए भाजपा को काफी कुछ ठोस करना होगा।
उत्तर पूर्व में आहिस्ता-आहिस्ता पग बढ़ाने और पार्टी की पैठ को गहरे तक पहुंचाने में चुनावी रणनीतिकार जरूर सफल हुए हैं। इन इलाकों में पार्टी की 'लुक ईस्ट पॉलिसी' और 'एक्ट ईस्ट पॉलिसी' एक मायने में कारगर जरूर हुई है। यह इस दृष्टि से भी बेहद अहम है कि 2012 तक वहां भाजपा शून्य थी. अब अगले साल नगालैंड और त्रिपुरा में होने वाले विधान सभा चुनाव में पार्टी को अपना दमखम दिखना होगा।
मणिपुर में भाजपा सरकार बनाने की दौड़ से खुद को पीछे भी नहीं कर रही है। बाकी छोटे दलों और निर्दलीयों के भरोसे खुद का सीएम बिठाने की रणनीति पर काम कर रही है। सरकार बनाने या कहें बचाने की कसरत पार्टी गोवा में भी कर रही है, जहां उसने सतही प्रदर्शन किया है। यहां पार्टी इस बार सीट (13) और मत फीसद (32.5) दोनों में पिछले साल के मुकाबले काफी पीछे रही।
हालांकि, गोवा में पूर्व सीएम मनोहर पर्रिकर का चुनाव में प्रत्यक्ष तौर पर नहीं उतरना और फिर दबाव में सी एम् बनाना पीडीए कारण संघ से विद्रोह कर अलग दल बनाने वाले सुभाष वेलिंगकर के चलते नुकसान उठाना पड़ा है। पंजाब की बात करें तो वहां सबसे ज्यादा झटका सत्तारूढ़ दल अकाली-भाजपा गठबंधन को नहीं बल्कि आम आदमी पार्टी को हुआ है। प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाने की बात कहने वाली आप के लिए राहत की बात यही रही कि वो मुख्य विपक्ष का धर्म निभाएगी। मगर सीएम चेहरा न होना, दल में विवाद और टूट समेत कई मुद्दों के चलते पार्टी निस्तेज हुई.केजरीवाल को इस पर मंथन करना होगा. उत्तराखंड में बीजेपी की जीत में 'कांग्रेस' विधायकों से भी मदद मिली. अब वहां की रणनीति पर सभी की निगाहें होंगी. अब कुछ करने की इनकी बारी है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क 9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com
पूर्व में प्रकाशित लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक कीजिए