
अपनों के लिए गल पर घूमने की रस्म
अंचल में धुलेंडी के दिन गल-चूल का पर्व मनाया जाता है। मुख्य रूप से यह पर्व अपने व परिवार के प्रति जुड़ी हुई आस्था का विशेष पर्व है। लोग भले ही इसे अंधविश्वास मानें लेकिन आदिवासी व ग्रामीण अंचल के लोग अपने लोगों की सेहत खराब होने पर उसकी सेहतमंद होने की कामना करते हैं और फिर गल पर घूमते हैं।
यही आस्था चूल के प्रति भी रहती है। जहां पर धधकते अंगारों पर लोग चलते है। जिले में 30 से अधिक स्थानों पर गल-चूल का पर्व मनाया जाता है। चित्र बगड़ी क्षेत्र का, जहां गल-चूल के मेले में हजारों लोग शामिल हुए।
बड़वानी सहित क्षेत्र के कई स्थानों पर धुलेंडी की शाम गाड़ा खिंचाई के आयोजन हुए। इस दौरान 7-8 टन वजनी गाड़ों को 200 मीटर तक खींचा गया। करीब 13 गाड़ों को एक-दूसरे से बांधकर सजाया गया। पहले गाड़े का वजन डेढ़ सौ किलो था। गाड़ा खींचने वाले बड़वे राकेश यादव को हल्दी लगाई गई। बाद में जयघोष के साथ गाड़े खींचे गए।