भोपाल। मप्र जबलपुर उच्च न्यायालय की डबल बैंच ने एक महत्वपूर्ण फैसला देते हुए कहा कि संविदा महिला कर्मचारियों को भी नियमित महिला कर्मचारियों के समान मातृत्व अवकाश प्रदान किया जाना चाहिए। जबलपुर हाईकोर्ट के इस आदेश से संविदा महिला कर्मचारियों को कई विभागों में नहीं दिये जाना वाला 6 महीने का मातृत्व अवकाश और दो वर्ष का चाईल्ड केयर लीव मिलने लगेगा।
मप्र संविदा कर्मचारी अधिकारी महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष रमेश राठौर ने बताया कि जिला सत्र न्यायालय छिंदवाड़ा में कोर्ट मैनेजर के पद पर कार्यरत महिला संविदा कर्मचारी प्रियंका गुजरकर ने मातृत्व अवकाश की मांग अपने अधिकारियों से की थी जिले के अधिकारियों ने मातृत्व अवकाश देने से मना कर दिया था। जिसमें कहा गया था कि आप संविदा पर हैं इसलिए मातृत्व अवकाश प्रदान नहीं किया जा सकता। प्रियंका गुजरकर ने जबलपुर हाईकोर्ट में याचिका दायर कि याचिका पर जबलपुर हाईकोर्ट की डबलबैंच में एक्टिंग चीफ जस्टिस राजेन्द्र मेनन और जस्टिस अंजलि पालो की युगलपीठ ने अपने फैसले में कहा भले ही महिला कर्मी की सेवा शर्ते या कार्य की प्रकृति नियमित कर्मचारियों से अलग हो लेकिन जब बात मातृत्व से जुड़ी हो तो उसको सभी लाभ देना नियोक्ता की संवैधानिक जिम्मेदारी है।
ऐसे में यह समझ से परे है कि आखिर क्यों याचिकाकर्ता को उसके हक से वंचित किया जा रहा है। इस मत के साथ युगलपीठ ने जिला सत्र न्यायाधीश छिंदवाड़ा के आदेश को खाारिज करते हएु याचिका कर्ता को सभी लाभ देने के आदेश जारी किए।
मप्र संविदा कर्मचारी अधिकारी महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष रमेश राठौर ने कहा है कि डबल बैंच के इस आदेश से प्रदेश के विभिन्न विभागों और उसकी परियोजनाओं में संविदा पर कार्यरत एक से डेढ़ लाख महिला संविदा कर्मचारियों को लाभ होगा उनको भी मातृत्व अवकाश और चाइल्ड केयर लीव मिलने का रास्ता खुलेगा। क्योंकि वर्तमान में सरकार और बनिये की दुकान में कोई अंतर नहीं रह गया है। सरकार अब अपने कर्मचारियों के साथ आदर्श नियोक्ता की बजाए अंग्रेजों की तरह व्यवहार कर रही हैं उनके आदर्श नियोक्ता सिद्वांत समाप्त हो गया जो कि नियोक्ता और कर्मचारियों के बीच संघर्ष की राह प्रशस्त करता है ना कि संस्था के विकास की और।