
मुख्य न्यायाधीश मंजूला चिल्लूर व न्यायमूर्ति गिरीश कुलकर्णी की खंडपीठ ने कहा कि ऐसे लोग सुरक्षा के लिए भुगतान कर सकते हैं तो फिर इन्हें सरकार क्यों मुफ्त में सुरक्षा प्रदान करती है। अदालत ने कहा कि जिसे वास्तव में सुरक्षा की जरूरत है और वे सुरक्षा का खर्च वहन करने में असमर्थ हैं, ऐसे लोगों को मुफ्त में सुरक्षा देना उचित है लेकिन बिल्डर, सेलिब्रिटी, उद्योगपति व राजनीतिक दलों के लोग सुरक्षा का भुगतान कर सकते हैं।
सरकार उन्हें क्यों नि:शुल्क सुरक्षा देती है। जब कोई परेशानी सामने आती है तो सरकार कहती है कि उसके पास पुलिस बल की कमी है लेकिन वीआईपी सुरक्षा में तैनात पुलिसवालों की संख्या पर सरकार कुछ नहीं बोलती। इस दौरान खंडपीठ ने वीआईवी सुरक्षा के लिए तय रकम की वसूली को लेकर भी सरकार की निष्क्रियता पर नाराजगी जाहिर की। खंडपीठ ने कहा कि यदि सरकार सुरक्षा देने को लेकर कोई समाजसेवा करना चाहती है तो सीधे तौर पर हमें बताए।
सरकारी की सूची के मुताबिक नेताओं, उनके रिश्तेदारों व पड़ोसियों को भी पुलिस सुरक्षा दी गई है। ऐसे लोगों को सुरक्षा देने की क्या जरूरत है? सरकारी रकम को सरकार इस तरह से नष्ट नहीं कर सकती।
सुरक्षा शुल्क का 6 करोड़ बकाया
इससे पहले सरकारी वकील अभिनंदन व्याज्ञानी ने कहा कि सरकार निजी लोगों को दी गई वीआईपी सुरक्षा की समीक्षा करेगी। उन्होंने कहा कि मुंबई में वीआईपी सुरक्षा के नाम पर 21 करोड़ रुपए बकाया थे। इसमें से सरकार ने 2010 से लेकर अब तक 15 करोड़ रुपए वसूल लिए हैं। 6 करोड़ रुपए के करीब राशि अभी भी बकाया है। इसे भी जल्द से जल्द वसूल लिया जाएगा।